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________________ ३८४ भगवतीसूत्रे चिन्तितः प्रार्थितः मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत-कः स एषः अमार्थित पार्थक: दुरन्तपान्तलक्षणः हीश्रीपरिवर्जितः, हीनपुण्यचातुर्दशो यद् मम अस्याम् एतद्रूपायाम् दिव्यायां देवद्धौं, यावत् दिव्ये देवानुभावे लब्धे, प्राप्ते अभिसमन्वागते उपरि अल्पौत्सुक्यो दिव्यान भोगभोगान् भुञ्जानो विहरति, एवं उस समय बह पुरन्दर-शक अपनी प्रभासे यावत् दशों दिशाओंको उद्योतयुक्त और प्रभा से युक्त कर रहा था। सौधर्मकल्प में सौधर्मावतंसक विमान में शक्र नामक सिंहासन पर बैठ कर यावत् दिव्य भोगने योग्य भोगों को वह भोग रहा था- ऐसी स्थिति से युक्त इन्द्र को उसने देखा । उसको उस प्रकार से देखकर उस चमर को (इमेयारूवे) इस प्रकार का (अज्झथिए) आध्यात्मिक (चिंतिए) चिन्तित (पस्थिए) प्रार्थित (मणोगए) मनोगत (संकप्पे) संकल्प (समुप्पन्जित्था) उत्पन्न हुआ (केस णं एस अपत्थियपत्थए) अरे ! यह कौन है जो अप्रार्थित-मृत्यु की चाहनावाला बना हुआ है (दुरंतपंलतक्खणे) जिसके बिलकुल खराब निकृष्ट-लक्षण हैं। (हिरिसिरिपरिवजिए) लज्जा और शोभा से जो रहित है। (हीणपुण्णचउद्दसे) पुण्य हीन चतुर्दशी के दिन जिसका जन्म हुआ। (जं ममं इमाए एथारूवाए दिव्वाए देवड्डीए) जो मेरे पास यह इस प्रकार की दिव्य देवर्द्धि के होने पर तथा (जाव दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए) यावत् दिव्य देवानुभाव के लब्ध, प्राप्त एवं अभिसमन्वागत होने पर भी (उम्पि) તેજની ચારે દિશાઓને દેદીપ્યમાન તથા પ્રભાયુકત કરી રહ્યો હતો. અને સૌધર્મકલપમાં સૌધર્માવત સક નામના વિમાનમાં શક નામના સિંહાસન પર બેસીને દિવ્ય ભેગે ભેગपतो तो. तेने ७५२ या प्रमाणुनी तमन्नने यमरेन्द्रना मनमा (इमेयारूवे) मा प्रश्न (अज्झथिए) प्यामिर, (चिंतिए) (AFFतत, (पत्थिए) प्रार्थित (म. णोगए) भागत (संकप्पे समुप्पज्जित्था) २४६५ 8५-न थयो-(केस णं एस अपथियपत्थए) मा छे रेने भरवानी ४२छ। २४ छे! (दुरंतपंतलक्खणे) Rai सक्षमिलल मम छ, (हिरि सिरि परिवज्जिए) Raerl अने. समाथी २हित छ, ( हीणपुण्णचाउद्दसे ) म पुष्यहीन योदशने हिसे थयो छ, (जं ममं इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवडीए) भारी पासे २॥ ५४२नी हिव्य हेपद्धि 3 छतi, (जाव दिवे देवाणुभावे लध्धे पत्ते अभिसमण्णागए) तथा में દિવ્ય દેવપ્રભાવ લબ્ધ, પ્રાપ્ત અને સમન્વાગત કર્યા છતાં પણ (૩) જે મારા કરતાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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