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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.२ म.२ असुरकुमारदेवानामुत्पातक्रियानिरूपणम् ३५७ कल्पः चमरोऽपि कदाचित् पूर्व सौधर्मकल्पपर्यन्तमूर्ध्वमुत्पतितवान् न वा! इति प्रश्नाशयः। भगवान् आह-'हंता, गोयमा ! हन्त, इति, स्वीकारे हे गौतम ! चमरस्योवोत्पातविषये त्वया यदुक्तं तत्सत्यम् । गौतमः पुनः प्रच्छति'अहो णं भंते ! इत्यादि । हे भगवन् । 'अहो णं' अधः खलु लोके प्रथमदेवलोके तिष्ठन् 'चमरे चमरः 'असुरिंदे' असुरेन्द्रः 'असुरकुमारराया' असुरकुमारराजः 'महिडीए' महर्द्धिकः अतिशयसमृद्धिशाली 'महज्जुईए' महाधुतिकः-अतिशयशोभाशाली वर्तते किन्तु 'जाव-कहिं पविट्ठा?' यावत् कुत्र पविष्टा ? अर्थात तदीया ताशी महर्द्धिः, ताशी महाधुतिश्च क्वान्तर्हिता! भगवान् कूटाकारशालादृष्टान्तेन समुत्तरयति-कूडागारसालादिहतो भाणिक्या कभी यावत् सौधर्मकल्पतक असुरेन्द्र असुरराज यह चमर उर्वलोकमें गया हैं, कि नहीं गया हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते है 'हंता गोयमा' हां गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर सौधर्म स्वर्गतक उर्ध्वलोक में गया है। अब गौतम स्वामी प्रभुसे यह प्रश्न कर रहे है कि इस चमरेन्द्र की वह महाऋद्धि और महाद्युति कि जिसके साथ यह यहां प्रकट हुआ था वह देखते२ कहाँ चली गई है-"अहो णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया महिटिए महज्जु इए जाव कहिं पविठ्ठा' हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज जो महर्द्धिक एवं महाद्युतिसंपन्न है यावत् उसकी वह महद्धि और महा शुति कहां प्रविष्ट हो गई ? कहां चली गई ? तब इसके उत्तर में गौतमको समझाते हुए प्रभु कहते है-हे गौतम ! यह सब विषय तीसरे शतकके प्रथम उद्देशेमें ईशानेन्द्रके प्रकरणमें कूटाकार शालाके दृष्टान्त से स्पष्ट किया गया है-अतः वहां से इस द्रष्टान्तकी योजना કલ્પ સુધી ગયો છે કે નથી ગયે? તેને ઉત્તર મહાવીર પ્રભુ આ પ્રમાણે આપે છે"ता गोयमा", गौतम ! यमरेन्द्र Saraswi सोयम ४६५ अंधी गया खता. - હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પૂછે છે કે જે મહાદ્ધિ અને મહાદ્યુતિ સાથે ચમરેન્દ્ર અહીં પ્રકટ થયે હતું તે મહાકદ્ધિ અને મહાદ્યુતિ કયાં ચાલી ગઈ– "अहो णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया महिडिए महज्जुइए जाव कहिं पविट्ठा" महन्त ! मसुरेन्द्र मसु२००४ यभ२ मा समृद्धि महाधुति माहिया યુક્ત છે. તેની તે મહદ્ધિ અને મહાવૃતિ કયાં સમાઈ ગઇ? ક્યાં અદશ્ય થઈ ગઈ. ઉત્તર-હે ગૌતમ! આ તમામ વિષય ત્રીજા શતકના પ્રથમ ઉદ્દેશામાં ઈશાનેન્દ્રના પ્રકરણમાં કુટાકારશાલાના દૃષ્ટાંત દ્વારા સમજાવવામાં આવ્યું છે. અહીં પણ એ પ્રમાણે श्री. भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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