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________________ ३४८ भगवती सूत्रे प्रश्नका वा, पुलिन्दा वा, एकम् महद् अरण्यं वा, गर्त वा, दुर्गे वा, दरीं वा, विषमं वा पर्वतं वा निश्राय सुमहद् अपि अश्वबलं वा, हस्तिबलं वा, योधवलं वा, धनुर्वलं वा आकलयन्ति, एवमेव असुरकुमारा अपि देवाः नान्यत्र ( नन्वत्र ) अर्हतो वा, अच्चैत्यानि वा, अनगारान् वा भावितात्मनो निश्राय ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, यावत्-सौधर्मः कल्पः, सर्वेऽपि भगवन् ! असुरकुमारा देवाः ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, जाति के लोग, बब्बर जाति के लोग टंकणजाति के लोग, भुतुयजाति के लोग, प्रश्नकजाति के लोग (पुलिंदाइवा ) पुंलिन्द जाति के लोग ( एगं महं रण्णं वा ) एक बडे भारी जंगल का (गढ वा ) खड़ेका ( दुग्गं वा ) दुर्ग का ( दरिं वा ) गुफा का ( विसवं वा ) विषमप्रदेश का खड्डों और वृक्षों से युक्त हुए स्थान का ( पव्वयं वा ) अथवा पर्वत का ( णीसाए ) आश्रय करके (सुमहल्लमवि आसवलं वा) बहुत बडे बलिष्ठ अश्वसैनिकों को (हत्थिबलं वा) अथवा हाथियों के लश्कर को, (जाहबलं वा) या योद्धाओं के सैन्य को, (धणुचलं वा) अथवा धनुर्धारियों की सेना को ( आगलेति ) आकुल व्याकुल करने की अर्थात् जीतने की हिम्मत करते हैं ( एवामेव ) इसी तरह से (असुरकुमारा वि देवा) असुरकुमार देव भी (णण्णस्थं अरिहंते वा अरिहंतचेयाणि वा अणगारे वा भावियप्पणी निFare) निश्चय से अरिहंत के अनगार, अथवा भावितात्मा साधुओं के सहारे के प्रभाव से (उड्ढ उप्पयंति) ऊँचे उडते हैं अर्थात् उर्ध्वलोक में (जाव सोहम्मो कप्पो) यावत् सौधर्मकल्पतक जाते हैं। ( सव्वे लतिना खेोडी, भुतुयन्नतिना बोडो प्रश्नम्मतिना सोडी (पुलिंदाइ वा ) ने पुलिन्द्र लतिना सोडे ( एगं महं रण्णं वा ) मे गढ भगसना अथवा (गडवा) मानो, (दुग्गं वो) दुर्गा, (दरिंबा) गुझना (बिसर्व त्रा) विषम स्थानना वृक्षा भने भाडामाथी युक्त स्थानना, (पञ्चयं वा ) अथवा पर्वतन (जीसाए) माश्रय साने (सुमहल्लमवि आसबलं वा ) धामणवान अश्वहणनो अथवा गहना, (जोहबलं वा धणुबलं वा) पायहण योद्धाग्यानो अथवा धनुर्धारियोनी सेनानी ( आगळेति) पराभ्य ४२वानी हिंमत ४री शडे छे, (एवामेव ) मे प्रभा (असुरकुमारा वि देवा ) असुरकुमार देवा (पण्णत्थं अरिहंते वा अरिहंतचेइयाणि वा अणगारे वा भावियप्पणो निस्साए ) અર્હંત ભગવાના, અણુગાર અથવા ભાવિતાત્મા સાધુએાની સહાયથી અવશ્ય (उड्ड उप्पयंति जाब सोहम्मे कप्पो) उध्वसम्भां सौधर्भ उदय पर्यन्त भ श छे. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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