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________________ २७२ भगवतीस्त्रे देव्यच 'ईसाणं' ईशानं देवेन्द्र देवराजम् 'आदंति' आद्रियन्ते यावत् 'पज्जुवासंति' पर्युपासते यावत्पदेन परिजानन्ति स्मरन्ति वन्दन्ते नमस्यान्त इति संग्राह्यम् । ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य तम्य 'आणा-उववाय-वयणनिसे' आज्ञा-उपपातवचननिदेशे तत्र कर्तव्यमेवेदम्' इत्याधादेशः, उपपातः शुश्रूषा सेवा, अभियोगपूर्वक आदेशो वचनम्-प्रश्चिते विषये नियतोत्तररूपो निर्देशः, आज्ञादिपरिपालने ‘चिट्ठति' तिष्ठन्ति । ‘एवं खलु गोयमा' एवं खलु हे गौतम ! ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन सा उपर्युक्ता दिव्या 'देविड्डी' देवदिः यावत् अभिसमन्वागता ॥ मू० २५ ॥ मूलम्-'ईसाणस्स भंते ! देविंदस्स, देवरणो केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! सातिरेगाइं दो सागरोवमाई कुमार देव और देवियां उसी दिन से लेकर ईशानेन्द्र का आदर करने लगे, उसकी पर्युपासना-सेवा करने लगे, उसकी आज्ञाका पालन करने लगे, वचन मानने लगे और उसके आज्ञा में चलने लगे। 'तप्पभिई'च णं गोयमा ! ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविंद देवरायं आदति जाव पज्जुवासंति' इत्यादि अभिसमण्णागया' तक के पदों की व्याख्या स्पष्ट है। 'आणा-उववाय-वयण-निद्देसे' इन पदों का अर्थ इस प्रकार से है- तुम्हें यह काम करना ही होगा इस प्रकार का जो आदेश है वह आज्ञा है, सेवा-शुश्रूषा का नाम उपपात है, अभियोग पूर्वक आदेश का नाम वचन है। प्रनित विषय में नियत उत्तररूप निर्देश होता है। इस प्रकार हे गौतम ! तुमने जो देवेन्द्र देवराज ईशान की देवद्धि प्राप्ति के विषय में पूछा था सो यहां तक हमने तुम्हें कहा कि उसने इस प्रकार से वह दिव्य देवर्द्धि प्राप्त की है।२५। દેવિ ઇશાનેન્દ્રને આદર કરે છે, પર્ય પાસના (સેવા) કરે છે, તેમની આજ્ઞાનું પાલન કરે છે, તેમનાં વચનને ઉથામતા નથી અને તેમના નિર્દેશ પ્રમાણે ચાલે છે. "आणा-उववाय-बयण-निदेसे" । अर्थ मा प्रभारी छ- "तभा२ मा म ४२ ४ ५४, " मा प्रश्न के माहेश ४२शय तेने आज्ञा ४ . " उववाय " (ઉપપાત) એટલે સેવા શુશ્રષા અભિયેગપૂર્વકના આદેશને વચન કહે છે. પૂછાયેલા વિષયના નિયત ઉત્તરરૂપ નિર્દેશ હોય છે. હે ગૌતમ! ઈશાનેન્દ્ર ઉપર કહ્યું તે પ્રકારે (ઉગ્ર તપસ્યા પાદપપગમન સંથારો આદિના પ્રભાવથી) તે દિવ્ય દેવદિ આહિ પ્રાપ્ત કર્યા છે. સૂ ૨પા श्री भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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