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भगवतीसूत्रे स्यित्वा सेवामहे किमर्थ सेवामहे इत्याह-अम्हाणं देवाणुप्पिया' अस्माकम् देवानुप्रिय-हे देवानुप्रिय ! अस्माकम् 'बलिचंचारायहाणी' बलिचञ्चाराजधानी 'अजिंदा' अनिन्द्राः- इन्द्ररहिताः 'अपुरोहिया' अपुरोहिताः-पुरोहितरहिताः तथा- 'अम्हेऽवि य णं देवाणुपिया' वयमपिच खलु देवानमिय-हे देवानप्रिय ! वयमपि खलु निश्चयेन 'इदाहीणा' इन्द्राधीनाः इन्द्रवशवर्तिनः 'इंदाहिटिया' इन्द्राधिष्ठिताः- इन्द्राधारजीविनः 'इदाहीणकजा' इन्द्राधीनकार्याश्च वर्तामहे 'तं' तस्मात् 'तुब्भे देवाणुप्पिया' हे देवानुप्रियाः! यूयम् 'वलिचंचारायहाणी' बलिचञ्चाराजधान्या-अधिपतित्वम् ‘आढाइ' आद्रियत, आदरविषयीकुरुत, 'परिजाणह' परिजानीत सम्यविचारयत 'सुमरह' स्मरत, स्मरणविषयी कुरुत, 'अहं बंध' अर्थ वध्नीत 'नियाणं' निदानम् 'पकरेह' प्रकुरुत-बलिचश्चाराजनुप्रिय की वंदना करते हैं और नमस्कार करते हैं 'जाव पज्जु वा. सामो' यावत् आपकी पर्युपासना करते हैं। यहां यावत्पद से 'वन्दित्वा नमंसित्वा वंदामहे' इन पदोंका संग्रह हुआ है। हम आपकी किस लिये सेवा करते हैं- तो इस बाद को प्रकट करते हुए वे कहते हैं- 'अम्हाणं देवाणुप्पिया!' हे देवानुप्रिय ! हमारी बलिचंचा रायहाणी अजिंदाअपुरोहिया' बलिचंचा राजधानी इस समय इन्द्ररहित एवं पुरोहित रहित बनी हुई है 'अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया' तथा हे देवानुप्रिय ! हम सब 'इदाहीणा इदाहिट्टिया' इन्द्र के आधीन रहनेवाले हैं, इन्द्रके सहारे जीने वाले हैं 'इंदाहीणकजा' और हमारे जितने भो कार्य होते हैं. वे सब उनकी आज्ञा के अनुसार ही होते हैं 'तं तुम्भेणं देवाणुपिया!' इसलिये हे देवानुप्रिय ! आप 'बलिसांचारायहाणि आढाइ' बलिचंचाराजधानो के अधिपतित्वपद को आदरो- आदर की दृष्टि से देखो 'परिजाणह' उसका अच्छी तरह से
ये छापे, " जाव पज्जुवासामो" ! नमः४।२ ४शन ममे सौ मापनी પર્ય પાસના કરીયે છીએ. હવે તેઓ તેમની પર્ય પાસના કરવાનું કારણ કહે છે– "अम्हाणं देवाणुप्पिया त्या" देवानुप्रिय ! सत्यारे समारी मसिया २००४धानी छन्द्र बने युरेडित विनानी छ. " अम्हे विय णं देवाणप्पिया उंदाहीणा इंदाहिडिया, इंदाहीणकज्जा" पानुप्रिय ! म सौन्द्रने आधीन मने छन्द्रने આધારે રહેનારા છીએ. અમારા સઘળાં કાર્યો ઈન્દ્રની આજ્ઞા પ્રમાણે જ થયાં કરે છે. "तं तुम्भेणं देवाणुप्पिया !" 3 देवानुप्रिय ! आ५ “बलिचंचा रायहाणि आढाह" मलियया पानातुं माधिपत्य स्वी -ते पहनो मा२ ७२,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩