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________________ 4 , म. टी. श. ३. उ. १.२२ बलिचाराजधानिस्थ देवादि परिस्थतिनिरूपणम् २२७ 'सदावेत्ता' शब्दयित्वा ' एवं ' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी ' अवादिषुः- भोदेबानुप्रियाः ! एवं खलु उक्तरीत्या बलिचचा राजधानी अधुना अणदा इन्द्ररहिता 'अपुरोहिआ' पुरोहितरहिता च वर्तते ' अम्हेयणं वयं च ख भोदेवानुप्रियाः ! ' इंदाघीणा' इन्द्रवशवर्तिनः इदाधिडिया ' इन्द्राधिष्ठिता इन्द्राधारस्थिताः अतएव 'इंदाघीणकज्जा' इन्द्राधीनकार्याः इन्द्राधीनं कार्य येषां ते तादृशाः - वयं वर्तामहे इत्यर्थः, 'अयं च देवाणुप्पिया ! तामली बालतत्रस्सी तामलित्तिए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिभे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणा जूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पावगमणं' अयञ्च तामली बालतपस्वी ताम्रलिप्त्यानगयः बहिः उत्तरपूर्वदिगन्तराले निर्वर्तनिकं मण्डलमालिख्य संलेखनाजूषणाजूपितः परित्यक्तभक्तपानः पादपोपगमन नामक संस्तारकं 'निवणे' निष्पन्नः तेन'अण्णमण्णं' आपस में एक दूसरे को उन्होंने बुलाया । 'सहावेत्ता ' बुलाकर ' एवं ' इस आगे कहे जाने वाले प्रकरण के अनुसार 'वयासी' कहा हे देवानुप्रियो ! उक्त्तरीति के अनुसार बलिचंचाराजधानी इस समय 'अनिंदा' इन्द्ररहित और 'अपुरोहिया' पुरोहितरहित हो रही है । और 'अम्हेणंच' हे देवानुप्रियो ! अपन लोग तो 'इंदाघीणा' इन्द्र के वशवर्ती होकर रहने वाले हैं । 'इंदाधिडिया' इन्द्र के आधार से सहारे से रहने वाले हैं, 'इंदाधीणकज्जा' समस्तकार्य इन्द्र के ही सहारे से होता हैं । अतः यह बालतपस्वी जो तामली है कि जिसने ताम्रलिप्सी नगरी के बहार ईशानकोण में निर्वर्तनिक मंडल लिखकर संधारा धारण कर रखा है चारों प्रकार का आहार यायजीव परित्याग करके जो पादपोपगमन संधारा में तत्पर बना हुआ तेभाणे खेड सीन्नने बोलाव्या. "सदावेत्ता एवं नयासी" मोलावीने ते आपस भां आ प्रमाणे वातशीत हरी हे हेवानुप्रिया ! सिया राधानी डासां "अणिदा" इन्द्रि विनानी छे भने “अपुरोहिया" पुरै हितश्री पशु रहित छे. " अम्हे य णं च इंदाघीणा" भने यो तो इन्द्रने अधीन रहेनारा छीमे, "इंदाधिडिया " इन्द्रने आश्रये रहेनारा छीमे, "इंदाघीणकज्जा" आप समस्त 'अय न्द्रनी આજ્ઞા અનુસાર થયા કરે છે. તે નીચે દર્શાવ્યા પ્રમાણે કરવામાં જ આપણું શ્રેય છે. તામ્રલિસી નગરીની બહાર, ઈશાનકાણમાં નિવ`નિક મંડળ આલેખીને (સ્થાનની મર્યાદા દર્શાવતી રેખા ઢોરીને), ચારે પ્રકારના આહારના જીવનપર્યંન્ત ત્યાગ કરીને, પાદપેપગમન સંથારા કરી રહેલા ખલતપસ્વી સૌ પુત્ર તામલિ પાસે જઈને અલિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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