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________________ म. टी. श.३ उ.१ २.२२ वलिगंचाराजधानिस्थदेवादिपरिस्थितनिरूपणम् २२३ चपलया, चण्डया, जयिन्या, छेकया, सिंह (तुल्य) या, शीघ्रया, उद्धृतया, दिव्यया, देवगत्या तियकअसंख्येयानाम् द्वीपसमुद्राणाम् मध्यं मध्येन येनैव जम्बूद्वीपोद्वीपः, येनेव भारतं वर्षम् , येनैव तामलिप्ती नगरी, येनैव तामलि मौर्यपुत्रः, तेनैत्र उपागच्छन्ति, उपागत्य तामले बालतस्विनः उपरि, सपक्षम् , सप्रतिदिशं स्थित्वा. दिव्यां देवद्धिम् , दिव्यां देवद्युतिम् , दिव्यं देवानुभागम् , यावत् उत्तर वैक्रियरूपों की विकुर्वणा की (ताए उकिट्ठाए तुरियाए) विकुर्वणा करके फिर वे उस उत्कृष्ट, त्वरित (चवलाए) चपल (चंडाए) चंड (जहणाए) जयशील ( छेयाए) निपुण । (सीहाए) सिंह जैसी बलिष्ठ (सिद्धाए) शीघ्रता से युक्त (उदघूयाए) उद्धृत (दिव्वाए) दिव्य (देवगईए) देवगतिद्वारा ( तिरियं असंखेजाणं दीवसमुदाणं) तिरछेरूप में असंख्यात द्वीप समुद्रों के (मज्झ मज्झेणं) ठीक बीचोंबीच से होकर (जेणेव जंबूदीवे दीवे जेणेव भारहे वासे) जहां जंबूद्वीप था, जहां भारतवर्ष था, (जेणेव तामलित्तीनगरी जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति) जहां ताम्रलिप्ती नगरी थी और उसमें भी जहां मौर्यपुत्र तामली थे वहां पर आये। (तेणेवउवागच्छित्ता तामलिस्स बालतवस्सिस्स ) वहां आकार के बालतपस्वी तामलि के (उप्पि) ऊपर (सपक्खि सपडिदिसं ठिच्चा) चारों दिशाओं में, सब विदिशाओं में स्थित होकर (दिव्वं देविड) दिव्य देवर्द्धिको (दिव्वं देवज्जुई) दिव्य देवद्युति को (दिव्वं देवाणुभागं) दिव्य देवप्रभाव वैश्यि३पानी विष्णु ४२N ( ताए उक्किट्ठाए तुरियाए) विgu ४ीने तेथे Gष्ट, त्वरित, (चवलाए) २५८, (चंडाए जइणाए छेयाए सीहाए सिग्याए उद्धृयाए दिवाए देवगईए ) 43. ०४यास, निपुण, सिंह की पवि०४, २५, Gधूत मन हिव्य देवति ॥ (तिरियं असंखेजाणं दीवसमुदाणं) तिय होना मध्यात द्वीपसमुद्रोनी (मज्झं मज्झेणं) १२००२ पथ्ये थधने (जेणेव जंबूदीवे दीचे जेणेव भारहे वासे जेणेब तामलित्ती नयरी जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति) दीपना भारतवर्ष मा माटी तसिसी नगरी पासे न्यां भी पन तामसि पापापमान सथा। ४६॥ २i 8ता, त्यां माव्या. (तेणेव उवागच्छित्ता तामलिस्स बालतवस्सिस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसं ठिच्चा) त्यां આવીને બોલતપસ્વી તામલિની ઉપર ચારે દિશાઓમાં અને સઘળી ઉપદિશાઓમાં २४ीने (दिव्यं देविड़ीं दिव्यं देवज्जुई, दिव्वं देवाणुभाग) हिव्य उपसद्धिथी, યુક્ત, દિવ્ય દેવદ્યુતિથી યુક્ત, દિવ્ય દેવપ્રભાવથી યુક્ત, દિવ્ય દેવપ્રભાવથી યુકત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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