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________________ २१० भगवतीम्रो स्निग्धतारहितत्वात् बुभुक्षितः आहाररहितत्वात् निर्मा स आहारवजनेन मांसोपचया भावात, निःशोणितः शुष्कशोणितत्वात, किटिकिटिकाभूतः निर्मासास्थि सम्बन्धि-उपवेशनादिक्रियाजन्यातिशयास्थिजनितकिट किट' इति शब्दयुक्तः अथिचर्मावनद्धः चर्ममात्रावनद्धास्थियुक्तः, कुशः दुर्बलः पतनुशरीर इत्यर्थः । 'तएणं' ततःखलु 'तस्स तामलिस्स' तस्य तामलेः 'बोलतवस्सिस्स' बालतपम्विनः 'अन्नया कयाई अन्यदा कदाचित् कस्मिंश्चित्समये 'पुनरत्तावरत्तकालसमयमि' पूर्वरात्रापररात्रकालममये रात्रे पूर्वभागे पश्चाभागे च 'अणिच्च में रस नहीं रहने के कारण वह शुष्क हो गया, स्निग्धता से रहित होनेके कारण वह रूक्ष हो गया, आहार करने का त्यागकर दिया होने के कारण वह बुभुक्षित हो गया, आहार के विना मांसोपचय होना नहीं है अतःवह मांस से शून्य बन गया, शरीर का खून सूख जाने से वह शोणित रहित हा गया केवल शरीर में हड्डियों का मनुष्याकार में ढांचामात्र बाको बचा रहा सो जब वह चलता, उठता, बैठता आदि क्रियाएँ करता नब उसके शरीर में से हड्डियो की आपस की रगड से "किट किट्" शब्द निकलने लग गया। इस तरफ वह चर्ममात्र से अवनद्ध अस्थिवाला होता हुआ शरीर से बिलकुल पतला हो गया। 'तएणं' जब उसकी शारीरिक स्थिति इस प्रकार की हो गई तब 'तस्म तामलित्तम्म बालनवस्सिस्स' उसबालतपस्वी तामलिप्त के 'अन्नया कयाइं किसी एक समय 'पुठवरत्तावरत्तकालसमयंसि' रात्रिके मध्यभाग में, जब कि वह શરીરમાં રસ નહીં રહેવાને કારણે તે સૂકાઈ ગયું. સ્નિગ્ધતાને અભાવે તે રૂક્ષ થઈ ગયું તેમણે આહાયનો ત્યાગ કર્યો હોવાથી તે દુષ્કાળ પીડિત વ્યક્તિના શરીર જેવું થઈ ગયું. આહાર વિના માંસનું બંધારણ થતું નથી, તેથી તે માંસશન્ય શરીર તદ્દન દુર્બળ લાગવા માંડ્યું. શરીરમાં રકત પણ નહીં રહેવાથી તે શરીર હાડ ચામના માળખા જેવું બની ગયું. ઉઠતા, બેસતા અને ચાલતા તમના હાડકાંના સાંધાના ઘસાવાથી “કટ-કટ” શબ્દ થવા લાગે. આ રીતે એકલા હાડપિંજર પર લાગેલી ચામડીपाते शरीर तन हुमणु अन नि anा मयु. "तएणं तपस्याने કારણે જ્યારે તેમની શારીરિક સ્થિતિ આટલી બધી નબળી પડી ગઇ ત્યારે "तस्स तामलित्तस्म बालतवस्सिस्स" त मालतवी तामसिन "अनया कयाई" 3 मे समय " पुम्वरत्तापरत्तकालसमयंसि" बिना भयाणे यारे ते શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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