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________________ १९४ भगवती सूत्रे 6 " विभागः 'कयको उय-मंगल- पायच्छित्ते' कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः कृतमषी तिलकादिदध्यक्षतादिरूपःस्वप्नविघातक प्रातः कृत्यः सुद्धपावेसाई' शुद्धप्रावेश्यानि - शुद्धानि प्रवेश्यानि सभाप्रवेशयोग्यानि, 'मंगल्लाई' माङ्गल्यानिमङ्गलसूचकानि 'थाई' वस्त्राणि 'पवरपरिहिए' प्रवरपरिहित: सम्यक्तया परिधाय 'अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे' अल्पसहायभरणालङ्कृतशरीरः अल्प मारबहुमूल्यकही रकाद्यलङ्कारशोभितशरीरः, 'भोगणवेलाए ' भोजनवेलायाम् भोगण मंडवंसि' भोजन मण्डपे ' सुहास गराए शुभासनवरगतः शुभामें उसने 4 पहाए ' स्नान किया araलिकम्मे ' काक आदि पक्षियों को अन्न आदिका भागप्रदान किया 'कपको उयमंगल पायच्छिते दुःस्वप्न आदिके दोषको दूर करने के निमित्त मषीका तिलक, किया, दध्यक्षत आदिका उपयोग किया इस तरह ये सब प्रातःकृत्य करके उसने 'सुद्धपावेसाई' सभामें प्रवेश के योग्य - सभा में जाते समय पहिरने के योग्य - शुद्ध-साफ 'मंगलाई ' मंगलसूचक 'वत्थाई' वस्त्रोंको 'पवरपरिहिए ' अच्छी तरहसे धारण किया पहिरा, कपडोंको पहिर करके फिर उसने 'अप्पभार महग्धाभरणालकियसरीरे' ऐसे हीरक आदि के अलंकारोंको यथास्थान पहिरा कि जा वजन में तो कम थे और कीमत में विशिष्ट मूल्यवाले थे । इस प्रकार से सज धज करके फिर वह तामली ' भोयणवेलाए' भो जनके समय 'भोयणमंडवंसि' भोजनमंडप में आया वहां वह 'सुहा सणवरगए' एक सुखासन पर बैठ गया 'तएणं' बाद में उसने वहां 6 6 थारे अठारनां भाडारो तैयार उशवीने "व्हाए" तेभशे स्नान उयु . " क्रयबलिकम्मे " કાગડા આદિ પક્ષીઓને ચણને માટે દાણા નાખ્યા. 66 Mantra मंगलपायच्छत्ते " દુઃસ્વપ્ન આદિના દોષના નિવારણને માટે મશનું તિલક કર્યું, ભાત દહીં આદિના ઉપયોગ ¥र्यो. या रीते मघां आत पतावीने "सुद्धपावेसाई" तेभो सलाभां ती वजते थडेरवा योग्य, शुद्ध “मंगलाई वत्थाई" भगणसूय वस्त्रो " पवरपरिहिए " धणी સારી રીતે પહેર્યાં. કપડાં ધારણ કરીને તેમણે अप्पभारमहग्घाभरणालंकियसरीरे" वनमां इस या अतिशय भूल्यवान मेर्वा हीरा भोती आहिना आभूषण। शरीरे धारणु अर्या' मा प्रमाणे सलवट रीने ते तामसी " भोयणवेलाए भोयण मंडवसि" लोन सेवानो समय थयो त्यारे लोभनमउभा माग्यो त्यां ते भे "सुहासणवरगए" सुभासन पर मेसी गये. "तरणं" त्याश्या त्यां भावेसा तेमना 56 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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