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________________ १९० भगवती सूत्र 6 ; 6 परिष्कार्य पाकादिना परिशोधनादिना संस्कृत्य 'मित्त - णाइ - नियग-सयणसंबंधि - परियणं' मित्र - ज्ञाति - निजक - स्वजन - सम्बन्धि - परिजनम् पूर्वोक्त सुहद् बन्धु कुटुम्ब परिवारादि सम्बन्धिवर्गम् ' आमंतेत्ता ' आमन्त्र्य निमन्त्र्य त मित्र - ज्ञाति - निजक - सम्बन्धि परिजनम् विपुलेन प्रचूरेण उपर्युक्ताऽऽशनपानंखाद्यस्वाद्येन वस्त्र - गन्ध - माल्यालङ्कारेण च 'सक्कारेत्ता' सत्कार्य भोजनद्वारा उपहारद्वारच सम्मान्य-सम्मानयित्वा तस्यैव उपर्युक्तकस्यैव मित्र - ज्ञाति - निजक सम्बन्धि - परिजनस्य पुरतोऽग्रे समक्षे इत्यर्थः 'जेहपुत्तं' जेष्ठपुत्रं कुटुम्बे 'ठावेत्ता' स्थापयित्वा नियोज्य तदुपरि कुटुम्बभारान् निक्षिप्य तं मित्र ज्ञातिनिजक-सम्बन्धि परिजनं कुटुम्बबन्धुजन ज्येष्ठपुत्रञ्च 'आपुच्छित्ता' आपृच्छय तेभ्यो निजविचारं वेत्ता' विपुल मात्रा में अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार Taar करके ' मिसाइ नियग सयण संबंधि परियणं' मित्रजन, ज्ञातिजन, निजजन-स्वजन संबंधीजन एवं परिजनोंको 'आमतेत्ता' आमंत्रित करके तं मित्तणाइणिय संबंधिपरियणं उन मित्रादि जनोंका 'विजलेणं उस विपुल ' असण पाण खाइम साइमेणं' अशन आदि द्वारा, तथा वत्थगंधमलालंकारेणं ' वस्त्र गंध माल्य एवं अलंकारों द्वारा सत्कार करू और मन्मान करू' | 'सक्कारेत्ता सम्माणित्ता' सत्कार सन्मान करके ' तस्सेव मित्तणाइयिग संबधिपरियणस्स पुरओ' फिर उन्हीं मित्रादिकों के समक्ष 'जेहं पुत्तं कुटु' बे' ज्येष्ठ अपने पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित करके अर्थात् उसके ऊपर कुटुम्ब का भार रख करके तं मित्तणाइ नियम संबंधि परियणं जेडुपुनंच आपुच्छित्ता' फिर मै उन अपने मित्रादिकों से और उस ज्येष्ठपुत्र से पूछकर 'सयमेव खाद्य भने स्वाद्य आहार रंधावीने " मित्तणाइ णियगसयण संबंधीपरीयणं " मित्रो, ज्ञातिन्नो, मुटुजीओ, संमंधीयो भने पनिाने "आमंतेत्ता" यमंत्रीने " तं मित्तणाइणियग-संबधिपरियणं " ते मित्रो, ज्ञातिन्नो, मुटुजीमो, समाधीयो भने परिजनोनो "बिउलेणं" ते वियुव "असणपाण खाइम साइमेणं" ભાજન આદિ દ્વારા તથા 46 वत्थगंध मल्लालंकारेणं સુગંધિ દ્રબ્યા, માળાએ मने सारी वडे सत्कार ४. “सक्कारेत्ता सम्माणिता" तेमना सत्कार उरीने " तस्सेव मित्तणाइणिय संबंधिपरियणस्स पुरओ " ते मित्राहि भनोनी समक्ष " जेट्ठ पुत्तं कुटुंबे " भारा ज्येष्ठ पुत्रने छुटुमनी नवामद्वारी सौंपी शि. "तं मित्तणाइनियग संबधि परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छित्ता" त्यारमा ते मित्रो, ज्ञातिनी, हुटु जीओ, संधी, परिन्नो भने न्येष्ठ पुत्रनी रब्न साने 22 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩ वस्त्र,
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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