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________________ १८० भगवतिसूत्रे बरोहति, प्रत्यवरुह्य स्वयमेव दारुमयं प्रतिग्रहं गृहीत्वा ताम्रलिप्त्या नगर्याः उच्च-नीच-मध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षाचर्यया अटति अटित्वा शुद्धौदनं प्रतिगृह्णाति, एवं त्रिसप्तकत्वः उद केन प्रक्षालयति, ततः पश्चात् आहारम् आहारयति ॥ मू० १९ ॥ टीका-भगवान् वायुभूतिम्पति ईशानेन्द्रस्य देवद्धर्यादि प्राप्तिकारणं पूर्वभवादिकं वर्णयति-'एवं खलु गोयमा !' हे वायुभूते ! एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण हहह तथा जव छ? तपस्या को पारणा का दिन होता तब वह उस दिन आतापनभूमि से उतरता और [ पच्चोरुहिता] उतर करके सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्चनीयमज्झिमकुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ) अपने आप काष्ठ निर्मित पात्रों को लेकर ताम्रलिप्ती नगरीमें ऊचनीच और मध्यमकुलों में गृहसमुदानकी भिक्षा प्राप्ति के निमित्त की गई चर्चापूर्वक शुद्ध भिक्षा लेनेके लिये भ्रमण करता (अडित्ता सुद्धोयणं पडिग्गाहह, तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेइ, तओ पच्छा आहारं आहारेइ) भ्रमण करके शुद्धओदन मात्र वह भिक्षावृत्ति में लेता और लेकर वह उन्हें २१ इक्कीस बार जल से प्रक्षालित करना बाद में वह उन्हें अपने आहार के काम में लेता ॥ ____टीकार्थ-ईशानेन्द्र ने दिव्य देवर्द्धि आदि किस तरहसे प्राप्त की है ऐसा वायुभूतिके पूछने पर भगवान कहते हैं-'एवं खलु गोयमा' हे गौतमगोत्रीय वायुभूति ! ईशानेन्द्र ने जो यह दिव्य देवद्धि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ] न्यारे छ8नी तपस्यान! पाराना व मावत त्यारे तेथे माताना भूमिमाथी नीय उतरता भने [ पच्चोरुहिता ] उतरीन [सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्चनीचमज्ज्ञिमकुलाई घरसमुदाणम्स भिक्खायरियाए अडइ] पोताना डायम ४४२यित पात्रो र તાપ્રલિમીનરીના ઊંચ, નીચ અને મધ્યમ ઘરસમુદાયમાં ગોચરીને માટે ભ્રમણ કરતા. [अडित्ता सुद्धो यणं पडिग्गाहइ, तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेइ, तओ पच्छा आहारं आहारेइ] तमा निक्षमा मात्र शुद्ध मात ऽ ४२ता. ते मातने તેઓ ૨૧ વાર પીથી ઘેતા. ત્યાર બાદ જ તેનો આહાર કરતા. ટીકાર્થ– “ઈશાનેન્દ્ર દિવ્ય દેવદ્ધિ આદિ કેવી રીતે પ્રાપ્ત કર્યા, એવા વાયુભૂતિ ગણધરના પ્રીનને જવાબ મહાવીર પ્રભુ આ પ્રમાણે આપે છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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