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________________ १७६ भगवतीसूत्रे लिप्त्यां नगर्याम् उच्च-नीच-मध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षा चर्यया अटित्वा शुद्धोदनं प्रतिगृह्य तं त्रिसप्तकृत्वः उदकेन प्रक्षाल्य ततः पश्चात् आहारम् आहतुम् इति कृत्वा एवं संप्रेक्षते, संप्रेक्ष्य कल्यं प्रादुष्प्रभातायां यावत-ज्वलति, स्वयमेव दारुमयं प्रतिग्रहकं करोति, कृत्वा विपुलम् अशन-पान खाद्यम्-स्वायम् उपस्कारयति, उपस्कार्य ततः पश्चात् स्नातः, कृतबलिकर्मा, कृतकोतुकमङ्गलकाष्ठनिर्मित पात्र लेकर (तामलित्तीए नयरीए) ताम्रलिप्ती नगरी में (उच्चनीय मज्झिमाई कुलाई धरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता) ऊंच, नीच, मध्यम कुलों में गृह समुदान की भिक्षा प्राप्ति के निमित्त की गई चर्या पूर्वक शुद्ध भिक्षा लेने के लिये भ्रमण करूँगा भ्रमण करके (सुद्धोदनं परिगहित्ता, वहांसे शुद्धओदन मात्र केवल भात लूंगा लेकरके (तं तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेत्ता उसे २१ बार जल से धोऊँगा। धोकर के (तओ पच्छा आहारं आहरित्तए) इसके बाद उसका आहार करूँगा (त्तिकद्दु एवं संपेहेइ) इस प्रकार का अभिग्रह लेने का उसने विचार किया। (संपेहित्ता कल्लं पाउन्भूयाए जावजलंते इस प्रकार के विचार के बाद प्रातःकाल हो गया यावत् सूर्य उदित हो गया) (सयमेव दारुमयं पडिग्गहयं करेइ) उसने स्वयमेव काष्ठका पात्र तयार किया ( करित्ता) तयार करके (विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावेइ) फिर उसने पुष्कल अशन, पान, खादिम स्वादिम चार प्रकार का आहार निष्पन्न कराया। जब चारों प्रकार का आहार निष्पन्न होचुका तब उसके बाद (हाए) (सुद्धोदनं परिगाहेत्ता) मात्र शुद्ध मात २४ १९.१.२३. (तं तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेत्ता) ते मातने २१ मत पाथी घोश. २॥ शते २१ मेवीस पार पायी घाये। (तओ पच्छा आहारं आहरित्तए) ते तिने त्या२ मा माहार ४२२. (त्तिक एवं संपेहेइ) 0 प्रारी स४६५ मा ४.. (संपेहिता कल्लं पाउभयाए जाच जलंते) मा प्रमाणे स४८५ ४ा पछी ज्यारे २त्री पूरी थ/ ने सूर्य न। य थये। त्यारे (सयमेव दारुमयं पडिग्गहयं करेइ) तेभो ते or stori पात्रो तया२ ४ा. (करित्ता) पात्रो तैयार ४ा ५७ [विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडोवेइ ] तमाशे मीटर प्रभामा मन्न, પાન, ખાદ્ય સામગ્રીઓ તૌયાર કરાવી. આ રીતે ચારે પ્રકારના આહાર તૈયાર કરાવીને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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