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पमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उः १ संक्षिप्तविपयनिरूपम् "चमर"त्ति चमरेन्द्रस्योत्पाताभिधानम् २ । तृतीये "किरिय"त्ति कायिक्या-अधिकरणिकी-माद्वेषिकी-पारितापनिकी-माणातिपातिकी क्रियापञ्चकवर्णनम् ३ । चतुर्थे 'जाण' ति देवेन यानं वैक्रियं कृतम् इति जानाति इत्यादिवर्णनम् ४ । पश्चमे 'इत्थि' त्ति साधुर्बाह्यान् पुद्गलानादाय अनादाय वा वैक्रियाणि स्यादिरूपाणि कत्त समर्थः ? इतिवर्णनम् ५। षष्ठे 'नगर'त्ति नगरसम्बन्धे षष्ठोद्देशकः ६ । सप्तमे 'पालय'त्ति सोमादिलोकपालवर्णनम् ७। अष्टमे 'अहिवइ 'त्ति अधिपतिविषयवर्णनम् ८ । नत्रमे 'इंदिय' त्ति इन्द्रियवर्णनम् ९ । दशमे 'परिस'त्ति चमरेन्द्र परिषवर्णनमिति १० । इत्येवं क्रमेण "तइयम्भि सए दस उद्देसा" तृतीये शते दश उद्देशा सन्ति । विकुर्वणा के विषय में प्रश्नोत्तर हैं १। द्वितीय उद्देशक में चमरेन्द्र के उत्पात का कथन है २ । तृतीयउद्देशक में 'किरिय' कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी, इन पांच क्रियाओं का वर्णन है ३। चौथे उद्देशकमें 'जाण' देवने वैक्रिय यान किया' ईस बात को साधु जानता है ? इस बात का वर्णन है । पांचवें उद्देशक में “इत्थि" बाह्यपुङ्गलों को ग्रहण करके अथवा नहीं ग्रहण करके साधु क्या वैक्रिय स्त्री आदिरूप करने में समर्थ है ? इस बात का वर्णन है ५। छठे उदेशकमें नगर' नगर के संबंधमें कथन है ६। सातवें उद्देशकमें "पालाय" साम मादि लोकपालों का वर्णन है ७। आठवें उद्दशकमें 'अहिवई' अधिपतेविषयक वर्णन है ८ । नौवें उद्दशकमें "इंदिय" इन्द्रियों का वर्णन है ९ । दशवें उद्दशकमें 'परिसा' चमरेन्द्र की परिषदा का वर्णन है १०॥ सक्रमसे 'तइयम्मि सए दस उद्देसा' तृतीयशतकमें दश उदेशक हैं। देश४मां न्यभरेन्द्रना यातनुं वर्णन यु. २ श्री शमा "किरिय" यिडी, માધિકરણિકી, પ્રાષિક, પારિતાવાનિકી; અને પ્રાણાતિપાતિકી,આ પાંચ ક્રિયાઓનું નિરૂપણ यु छे. 3. याथा देशमा "जाण" वे वैठिय यान ज्यु," से वात साधु तो
? २पातन प्रतिपाइन यु-छ. ४. पांयमा देशमा “इत्थि" मायाने डर રીને અથવા ગ્રહણ કર્યા વિના શું સાધુ વૈક્રિયશક્તિથી સ્ત્રી આદિ રૂપ ધારણ કરવાને मर्थ छ ?" २ वातर्नु न छ. ६.७४ प्रदेशमा 'नगर' विष सातभामा “पालाय" म. मा alsपास विषे ७. मामामा अहिवइ" मधिपति विष ८. नवभामा 'इंदिय" इन्द्रियो विष ८. मने इसमi देशमा “परिसा" यमरेन्द्रनी परिष६ विष
श्री. भगवती सूत्र : 3