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________________ ११६ 9 भगवती सूत्रे भगवन् ? ईशानः औदीच्येन्द्रः खलु ' देविंदे ' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः के म हिडीए' किं महर्द्धिकः ? कीदृशसमृद्ध्यादिशाली ? कीदृशीं कियतीञ्च विकुकर्तुं समर्थः ? इति प्रश्नाशयः । भगवान् महावीर : ईशानेन्द्रस्य समृद्धि विकुर्वणादिविषये प्रश्नयन्तं वायुभूतिं समाधत्ते - 'एवं तहेव' एवं तथैव पूर्वकथित केन्द्रमहद्धर्यादिसमानमेव ईशानेन्द्रस्यापि समृद्धयादिकं बोध्यम्, यद्यपि तात्पर्य यह है कि श्रमण भगवान महावीरसे तृतीय गौतम गणधर वायुभूतिने ऐसा पूछा कि हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र - सौधर्म देवलोकका अधिपति यदि इतनी बडी ऋद्धिवाला है यावत् वह पूर्व में वर्णित विकुर्वणा करने के लिये समर्थ हैं- यहां यावत् शब्द से 'महाद्युति, बलख्याति, सौख्य आदि पदोंका ग्रहण हुआ है और साथ में यह भी इस पदसे अभिव्यक्त किया गया है कि वह शक्रेन्द्र अपनी विकुर्वणा करनेकी शक्ति द्वारा निष्पन्न नाना रूपोंसे जंबूद्विप आदिको पूर्णरूपसे भर सकने की शक्ति से ओतप्रोत है, तो 'ईसाणे णं भंते! देविंदे देवराया के महिड़ीए' हे भदन्त ! जो देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र है वह कितनी बड़ी भारी ऋद्धिवाला है ? और कितनी कैसी विकुर्वणा करनेके लिये समर्थ है ? इस प्रकार भगवान् महावीर ने अपने से ईशानेन्द्रकी समृद्धि और विकुर्वणा शक्ति आदिके विषय में प्रश्न करनेवाले वायुभूति से समाधानरूपमें जो कुछ कहा वह इस प्रकार से है- 'एवं तथैव' इसमें प्रभुने गौतम को समझाया कि हे गौतम! जो तुमने ईशानेन्द्रकी समृद्धि और विकुर्वणा शक्तिको जानने के लिये प्रश्न किया हैं उसका समाधान यह हैं कि पहिले जैसा शक्रेन्द्र की समृद्धि और विकुर्वणा शक्तिके સૌધમ દેવલાકને અધિપતિ દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શ* જો આટલી બધી સમૃદ્ધિ આદિથી युक्त छे, ( महीं यावत् पहथी भड्डाधुति, महामण, भडायश, महासुम मने મહાપ્રભાવ, ગ્રહણ કરવા જોઇએ ) અને તે આગળ વર્ણવ્યા મુજબની વિકુવા કરવાને સમર્થ છે (તે પેાતાની વિષુ ણા શકિતથી ઉત્પન્ન કરેલા દેવ દેવીયા વડે એ જમૃદ્ધીપાને ભરી શકવાને સમર્થ છે), તે હે ભદન્ત ! ઉત્તરાધિપતિ, દેવરાજ, દેવેન્દ્ર કેટલી સમૃદ્ધિ આદિથી યુકત છે? તે કેવી વિષુ॰ણા શકિતથી યુકત છે ? વાયુભૂતિ અણુગારના પ્રશ્નના જે જવાખ મહાવીર પ્રભુએ આપ્યા, તે સૂત્રકાર હવે સમજાવે છે. " एवं तथैव" हे गौतम वायुभूति ! पडेसा शहेन्द्रनी समृद्धि, विठुवा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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