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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ० ७ ० १ देवस्वरूपनिरूपणम् ९६७ तत्प्रकरणमित्थम् 'कहिणं भंते सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता' कुत्र खलु भदन्त ! सिद्धानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? इह देवस्थानाधिकारे यत् सिद्धगण्डिकायाः कथनं कृतम् तत् स्थानाधिकारवलात् कथितमिति विज्ञेयम् । तथा जीवाभिगम सूत्रप्रकरणमपि अत्र वक्तयम् तथाहि 'कपाण पट्टानं कल्पानां प्रतिष्ठानं कल्पविमानानामाधारो वक्तव्य इत्यर्थः । स चैवम् 'सोहम्मीसाणेसु. णं भंते! कप्पेसु विमाण पुढवी कि पहडिया पण्णत्ता ? गोयमा ! घणोदहि पट्टिया पण्णत्ता" इत्यादि, सौधर्मेशानयोः खलु भद्रन्त ! कल्पयोः विमान पृथिवी किंप्रतिष्ठिता प्रज्ञप्ता ? गौतम ! घनोदधि प्र प्रतिपादन करने वाला एक प्रकरण है सो जहां तक यह समाप्त हुआ है वहाँ तक चारों प्रकार के देवों के भवन आदिकों के विचार समझलेना चाहिये, वह प्रकरण इस प्रकार से है - ( कहि णं भंते ! सिद्धोणं ठाणा पन्नत्ता ) हे भदन्त ! सिद्धों के स्थान कहां कहे गये हे ? इत्यादि । यहां देवस्थान के अधिकार में जो सिद्धगण्डिका का कथन किया गया है वह स्थानाधिकार के बल से किया गया है । तथा जीवाभिगमसूत्र का प्रकरण भी यहां कह लेना चाहिये जैसे ( कप्पाणपट्ठाणं ) कल्पविमानों का आधार कहना चाहिये, वह आधार विषयक कथन इस प्रकार से है - ( सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पे विमागपुढवी किं पट्टिया पण्णत्ता ? गोयमा ! घणोदहि पट्टिया) इत्यादि, सौधर्म और ईशान कल्प में विमानों की पृषिबी किसके आधारपर है ? उत्तर देते हुए प्रभु गौत्तम से कहते हैं कि हे गौतम ! वह पृथिवी घनोदधिवातचलय के आधार पर है । इत्यादि । कहा भी है છે, તેનું નામ ( સિદ્ધિગ`ડિકા ) છે, તે સિદ્ધિગડિકાની સમાપ્તિ થાય ત્યાં સુધીમાં ચાર પ્રકારના દેવાનાં ભવન આદિ વિષયનું નિરૂપણ કરવામા આવ્યુ छे. ते प्ररण या प्रमाणे छे-" कहिण भवे ! सिद्धाणं ठाण! पन्नत्ता ?" है ભદત ! સિદ્ધોનાં સ્થાન કયાં છે! ઈ ત્યાદિ. અહી દેવસ્થાનનું નિરૂપણ કરતી વખતે જે સિદ્ધગ`ડિકાનુ` કથન કરવામાં આવ્યુ છે તે સ્થાનનું વક્તવ્ય ચાલતુ હાવાથી કરવામાં આવેલ છે. તથા જીવાભિગમસૂત્રનુ પ્રકરણ અહી હી દેવું नोट-क्रेभ ट्ठे कप्पाणपाण" उपविभानो ( देवसेनां विभानो आधार अवलेह, ते साधार विषय उथन रमा प्रमाणे छे-' सोहम्मसामेसु में भंते! कप्पे विमाणपुढवी किंपइठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! घणोदहि पइडिया, 2 ત્યાદિ પ્રશ્ન હે ભદન્ત ! સૌધમ અને ઈશાન કલ્પમાં વિમાનાની પૃથ્વી ફાના આધાર પર છે ? ” ઉત્તર-હું ગૌતમ! તે પૃથ્વી ઘનેધિવાત-વલયના આધાર પર છે ” કહ્યું પણ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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