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________________ भगवतीसूत्रे प्रज्ञप्ताः तद्यथा भवनपति-वानब्यंतर-ज्योतिष्क-वैमानिकाः, कुत्र खलु भदन्त ! भवनमसिनाम् देवानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि,गौतम ! अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्या यथास्थानपदे देवानां वक्तव्यता सा भणितव्या नवरं भवनानि प्रज्ञप्तानि उपपातेन लोकस्य असंख्येयभागे एवं सर्व भणितव्यम् यावत् सिद्धिगण्डिका समाप्ता कल्पानां प्रतिष्ठानं वाहल्योच्चत्वम् एवं संस्थानम् जीवाभिगमे यावत् वैमानिकोदेशको भणितव्यः सर्वः ॥ सू० १ ॥ चार प्रकार के कहे गये हैं । (तंजहा) देवों के वे चार प्रकार ये हैं(भवणवह-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया) भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक । (कहिणं भंते ! भवणवासीणं देवाणं ठाणा पन्नता) हे भदन्त ! भवनवासी देवों के स्थान कहां कहे गये है ? (गोयमा) हे गौतम ! (इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपए देवाणं वत्तव्वया सा भणियव्वा) इस रत्नप्रभा पृथिवी के नीचे भवनवासी देवों के स्थान कहे गये हैं इत्यादि समस्त कथन प्रज्ञापना के स्थानपद में कहा है सो वहां जैसा जान लेना चाहिये । (णवरं) विशेषता यह है कि वहां स्थानपद में (ठाणापन्नत्ता) ऐसा कहा है, और यहां (भवणापन्नत्ता) भवन कहे गये हैं। ऐसा कहना यही विशेषता (णवरं) पदसे समझना चाहिये । (उववाएणं लोयस्स असंखेजइभागे एवं सव्वं भाणियव्य) इनका उपपात लोक के असंख्यातवें भाग में होता है। इस तरह सब कहना चहिये । (जाव सिद्धिगंडिया सम्मत्ता) यावत् सिद्धिगंडिका पूर्ण कह लेनी चाहिये । (कप्पाणपइट्ठाणं बाहल्लोच्चत्तं एवं सं ठाणं जीवाभिया२ ५४२ ४ा छ (तं जहा ) ते प्रा। PAL प्रमाणे छ-(भवणइ, वाणमंतर, जोइस, वेमाणिया) (१) अवनपति, (२) वानव्यन्त२, (3) ज्योतिष् भने (४) वैमानि ( कहि ण भंते ! भवणवासीणं देवाणं ठाणा पन्नत्ता ? ) 3 मह त! भवनवासी हेवानां स्थान ज्यां मावेस छ ? ( गोयमा ) गौतम ! ( इमीसे रयणप्पभाए पुदधीए जहा ठाणपए देवाण वत्तव्वया सा भाणियव्वा) આ રત્નપ્રભા પૃથવિની નીચે ભવનવાસી દેવનાં સ્થાન કહેલાં છે, ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના (સ્થાનપદ) માં કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવું (णवरं) विशेषता के छ है (भवणा पन्नत्ता) भवन उवामा माया . ( उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे एवं सव्वं भाणियव्वं ) तमना S५पात सोना असभ्यातमा लामो थाय छे. या प्रमाणे मधु नये. (जाव सिद्धिणंडिया सम्मत्ता) पूर्ण सिद्धि ५ त समस्त ४थन थन. (कपाणपट्टाणं बाहल्लोच्चत एवं संठाण जीवाभिगमे जाव वेमाणिमहेसो શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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