________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० ५ सू० १४ पयुपासनाफलनिरूपणम्
९४३
संयमवतां नवकर्मानुपादानात् " एवं अणण्हये " एवमनास्रवः किं फलः ! अना
16
(6
स्वस्य फलं किमितिप्रश्नाशयः - भगवानाह तव फले " तपः फलम् अनास्रवोहि लघुकर्मत्वात् तपः करोति-" तवे "तः किं फलम् ? " बोदाणफले " व्यवदानफलम् तपः व्यवदानं कर्म निर्जरणम् तपसा पूर्वसचितकर्मणां निर्जरणं भवतीति । ' से णं भंते ! वोदाणे किं फले ' तत् खलु भदन्त ! व्यवदानं किं फलम् ? व्यवदनस्य किं फलमित्यर्थः “ बोदाणे अकिरिया फले" व्यवदानम् अक्रियाफलम् योगनिरोध कलम् कर्मनिर्जरातोहि योगनिरोधं करोति । साणं भंते ! अकिरिया किं फला " तत् खलु भदन्त ! अक्रिया किं फला ? अक्रियाया किं फलमिति प्रश्नः, उत्तरयति - ' सिद्धीपज्जवसा गफला पन्नत्ता गोयमा ! प्रभु गौतम से कहते हैं कि हे गौतम! (अणण्यफले ) जो संयमशाली जीव होते हैं उनके उस संयम के प्रभाव से नवीन कर्मों का आस्रव नहीं होता है । अर्थात् - नवीन कर्म का बंध संयमधारी जीव के नहीं होता है । ( एवं अणहये तबकले ) इसी तरह से जो जीव आस्रव विना का हो जाता है वह लघुकर्मा होने से तप करता है (तवे वोदाण फले तप करने से आत्मा में पूर्व के संचित हुए कर्मों की निर्जरा होती है ( से णं भंते! वोदाणे किं फले) इस व्यवदान - निर्जरा से आत्मा को क्या लाभ होता है (वोदाणे अकिरीया फले) व्यवदान - निर्जरा से उसके योगों का निरोध हो जाता है अर्थात् कर्मों की निर्जरा होने से जीव अक्रिय हो जाता है अर्थात् वह योगों का निरोध करता है (सा णं भंते! अकिरिया किं फल) हे भदन्त ! वह अक्रिया किस फलवाली होती ? (सिद्धि पज्जव सागा फला) अक्रिया से अर्थात्-योगों का नि
ܕܕ
प्रश्ननु' नीचे प्रमाणे समाधान रे छे -' अणण्ड्यफले " हे गौतम! सयभना પ્રભાવથી નવીન કર્મોના આસ્રવ થતા નથી. એટલે કે સયમી જીવ નવીન अनि श्तो नथी “ एवं अण हये तवफले " ये रीते थे જીવ આસ્રવ રહિત હાય છે તે હજી કમી હેાવાથી તપ કરે છે. આ રીતે અનાસ वज तय छे. " तवे वोदाण फले " तथ्थी आत्मानी मडरना पूर्व सथित કર્મોની નિર્જરા થાય છે. से णं भंते! वादाणे कि फले ! " हे लहन्त ! या व्यवहान ( निर्भरा ) थी आत्माने शो साल थाय छे ? “ वोदाणे अकि रिया फले " વ્યવદાન ( નિર્જરા ) થી તેના ચેગેને નિરાધ થઇ જાય છે એટલે કે કર્મોની નિર્જરા થવાથી જીવ અક્રિય થઇ જાય છે–જીવ ચેાગાના निरोध रे छे. "सापं भते ! अकिरिया कि फळा ! " हे लडन्त ! ते अ-ि
66
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨