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________________ ९२० भगवतीसूत्रे लोकेषूत्पद्यन्ते, पूर्वसंयमेन कर्मितया संगितया आर्याः देवादेवलोकेषत्पद्यन्ते, सत्यः खलु एषोऽर्थः नो चैवात्मभाववक्तव्यतया, प्रभवः खलु गौतम ! ते स्थविराः भगवन्तस्तेषां श्रमणोपासकानाम् इमानि एतद्रपाणि व्याकरणानि व्याकर्तुम नो चैव खलु अप्रभवः तथैव ज्ञातव्यम् अवशेषितम् यावत् प्रभवः समिताः आयोगिकाः भगवन्त उन श्रमणो पासकों को इन इस प्रकार के उत्तरों को देने के लिये विशेष ज्ञानी हैं ( उदाहु ) अथवा (अपलिउज्जिया) साधारण ज्ञानी हैं। ( पुव्वतवेणं अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जति, पुव्वसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अज्जो ? देवा देवलोएसु उववज्जति सच्चेणं एसमटे णोचेवणे आयभाववत्तव्वयाए ) जो वे ऐसा कहते हैं कि हे आर्यों ! देव देवलोकोंमें पूर्वतपसे, पूर्वसंयम से, कर्मिता से संगिता से उत्पन्न होते हैं । यह बात सत्य है इसलिये हम ने कही है- हमने अपनी बुद्धि से नहीं कही है। ऐसा जो उन्होने कहा है क्या वह सत्य है ? इस पर भगवान् कहते हैं (पभूणं गोयमा! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयाख्वाइं वागरणाई वागरेत्तए, णो चेव णं अपभू ) हे गौतम ! वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों के प्रश्नों के इस प्रकार के इन उत्तरों को देने के लिये समर्थ हैं । असमर्थ नहीं हैं। (तह चेव णेयव्वं अवसेसियं ) बाकी और सब इस विषय में इसी प्रकार से जानना चाहिये अर्थान-वे स्थविर भगवन्त इस प्रकार से વિર ભગવંતને તે પ્રમાણે પાસના તે પ્રકારના ઉત્તર આપવાને ગ્ય વિશેષ शान युक्त छ “ उदाहु " Aथा “ अपलिउज्जिया" विशेषज्ञानथी २डित छ ? मेरो साधा२१ ज्ञानवाद छ “पुव तवेणं अज्जो ! देव देवलोएसु उववज्जति, पुव्वसं जमेण, कम्मियाए अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जति, सच्चेणं एसमटे णो चेव णं आयभाव वत्तव्वयाए" ते मे ४ छ -“है આર્યો ! પૂર્વતપથી, પૂર્વ સંયમથી, કમૈિતાથી અને સંગિતાથી દેવ દેવલેકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ વાત સત્ય હેવાથી કહી છે, અમારી બુદ્ધિથી ઉપજાવીને કહી નથી ” આ પ્રકારનું તેમનું કથન શું સત્ય છે? ગૌતમ સ્વામીના આ प्रश्नमा वाम महावीर प्रभु ॥ प्रमाणे माथे छे-“पभू णं गोयमा! ते थेराणं भगवंतो तेसि समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाई वागरणेइं वागरेत्तए, णो चेव णं अप्पभू" हे गौतम ! ते स्थविर मात श्रमासाना प्रश्नोनाते ५२उत्तरे। मावाने समर्थ छ मसभ नथी. (तह चेव णेयव्य अवसेसिय) બાકીનું સમસ્ત કથન પણ એ પ્રમાણે જ સમજવું એટલે કે તે સ્થવિર ભગવન્ત તેમના પ્રશ્નોના તે પ્રકારના ઉત્તર દેવાને અભ્યાસયુક્ત, ઉપગયુક્ત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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