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प्रमेयचन्द्रिका टी० १०२ श०५ सू० १३ पावापत्यीयविहारोत्तरनिरूपणम् ९१५ ____ छाया-ततः खलु भगवान् गौतमो राजगृहे नगरे यावत् अटन् बहुजनशब्द निशामयति शृणोति एवं खलु देवानुपिया ! तुङ्गिकायाः नगर्या बहिः पुष्पवतिके चैत्ये पार्थापत्यीयाः स्थविरा भगवन्तः श्रमणोपासकैरिमानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि पृष्टाः संयमः खलु भदंत ! किं फलः तपः खलु भदंत ! किं फलम् ? ततः खलु ते स्थविरा भगवन्तस्तान् श्रमणोपासकान् एवमवादिषुः संयमः खलु आर्याः ! अनासवफलः तपो व्यवदानफलम् तदेव यावत् पूर्वतपसा पूर्वसंयमेन कर्मितया
(तएणं से ) इत्यादि।
सूत्रार्थ-(तएणं से भगवं गोयमे ) इसके बाद भगवान गौतम ने (रायगिहे नयरे जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ ) जय कि वे राजगृह नगर में भिक्षा के निमित्त पर्यटन कर रहे थे अनेक मनुष्यों के मुख से इस प्रकार सुना (एवं खलु देवाणुप्पिया) हे देवानुप्रियो ! (तुंगियाए नयरीए बहिया पुप्फवइए चेइए ) तुंगिका नगरी के बाहिर पुष्पवतिक उद्यान में (पासावच्चिजा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाई एयारूवाई वागरणाइं पुच्छिया ) पार्श्वनाथ भगवान के सन्तानिक स्थविर भगवन्त आये हुए थे और वहां के श्रमणोपासकों ने उनसे इस प्रकार के इन प्रश्नों को पूछा था ( संजमेणं भंते ! किं फले ) हे भदंत! संयम का क्या फल है ? (तवेणं भंते किं फले) हे भदन्त ! तप का क्या फल है ? (तएणं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी) तब इन प्रश्रों के उत्तर में उन स्थविर भगवन्तों ने उन श्रमणोपासकों से ऐसा कहा
“तएणं से" इत्यादि
सूत्रार्थ-(तएण से भगवौं गोयमे ) मान गौतम ( रायगिहे नयरे आव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ) न्यारे २००४ नाम लिखा प्रालिने માટે ભ્રમણ કરતા હતા ત્યારે તેમણે અનેક માણસોને સુખે વાત સાંભળી ( एवं खलु देवाणुप्पिया ) 3 वानुप्रिया! (तु'गियाए नयरीए बहिया पुप्फवइए चेइए ) तुम नानी पडा२ पुपति शैत्यमा (पासावञ्चिज्जा थेरा भगवतो समणोवासएहिं इमाइ एयारूवाई वागरणाई पुच्छिया ) व नाय ભગવાનના સત્તાનિક સ્થવિર ભગવંતે પધાર્યા હતા. ત્યાંના શ્રમણોપાસકેએ तेभने । २ना प्रश्न पूछया उता-( संजमेण भते किं फले ?) 3 महन्त! सयभनु शु ५० भणे छ ? ( तवेण भंते कि फले ! ) महन्त ! त५र्नु ॥ भणे छ? (तएणते थेरे भगवतो ते समणोवासए एव वयासी) त्यारे ते श्यविर सन्तास तमना ते प्रश्नोनी सा प्रमाणे उत्तर माया-(संजमेण
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨