SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 844
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८३० भगवती सूत्रे समभिध्वंसेत. ईदृशः खलु गौतम ! मैथुनं सेवमानस्यासंयमः क्रियते तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! यावत् विहरति ।। सू० ७ ॥ टीका- 'मेहुणे णं सेवमाणस्स के रिसए असंजमे कज्जइ' मैथुनं खलु भदन्त ! सेवमानस्य कीदृशोऽसंयमः पापं क्रियते = भवति - इति प्रश्नः भगवानाह - सूत्र कहते हैं - ( मेहुणेणं ) इत्यादि सूत्रार्थ - ( भंते! मेहणेणं सेवमाणस्स के रिसए असंजमे कज्जइ ) हे भदन्त ! मैथुन कर्म सेवन करने वाले व्यक्ति के किस प्रकार का असंयम होता है ? | इसको दृष्टान्तद्वारा स्पष्ट करते हैं. (गोयमा) इत्यादि ( गोयमा ! से जहानामए केहपुरिसे) हे गौतम! जैसे कोइ पुरुष, ( तत्तणं) तप्त ( कणएणं ) शलाका द्वारा ( रूयनालियं वा बूरनालियं वा ) रुई की नलिका को अथवा बूर की नलिका को ( समभिसेज्जा ) नष्ट करदेता है ( गोयमा ) हे गौतम ! (एरिसरणं असंजमे ) ऐसा ही असंयम ( मेहुणं सेवमाणस्स ) मैथुनकर्म सेवन करने वाले व्यक्ति को ( कज्जह ) होता है। (सेवं भंते सेवं भंते जाव विहरइ ) हे भदन्त ! जैसा आप देवानुप्रिय ने कहा है - वह वैसा ही है है भदन्त ! वह वैसा ही है। ऐसा कह कर यावत् वे गौतम! अपने स्थान पर बैठ गये ॥ ७ ॥ टीकार्थ - (मेहुणं भंते ! सेवमाणस्स केरिसए असंजमे कज्जइ ) गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा जो यह प्रश्न किया है उसका कारण यह 3 - ( मेहुणे भंते ) इत्यादि । ) ३नी नसिानो अथ सूत्रार्थ - ( भंते ! मेहुणेणं सेवमाणस्स केरिसए असंजमे कज्जइ ! ) डे ભદન્ત ! મૈથુનકમ નું સેવન કરનાર વ્યક્તિના અસયમ કેવા પ્રકારને હાય છે? या वातना स्पष्टी४२ भाटे मे दृष्टांत आये छे - ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( से जहानामए केइपुरि से) नेवी रीते अर्ध पुरुष ( तत्तेणं कणएण) तत् सुवर्णुनी सजी वडे ( रूयनालियां वा बूरना लियं वा वा लूसानी नविना ( समभिवर्द्धसेज्जा ) नाश उरी हे गौतम! मरामर ( एरिसएण असं जमे ) भेभे माणस्स कज्जइ ) भैथुन उर्भ सेवन रनार व्यक्तिने थाय छे. ( सेव भंते ! जाव विहरइ ) हे लहन्त ! आय देवानुप्रिये उद्या प्रमाणे मने छे, आप કથન તદ્ન સત્ય છે. એવું કહીને ગૌતમસ્વામી પોતાને સ્થાને જઇને બેસી ગયા. अर्थ - ( मेहुणेण भंते ! सेवमाणस्स केरिसए असंजमे कज्जइ ) डे પ્રભુ ! જે વ્યક્તિ આ મૈથુનકમ'માં પ્રવૃત્ત થાય છે તેમને કેવા પ્રકારને नाथे छे, ( गोयमा ) असंयम ( मेण सेव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy