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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२३०५सू०१ अन्यमतनिरासपूर्वकस्वमतनिरूपणम् ८० इति । यस्मिन् समये स्त्रीवेदं वेदयति तस्मिन् समये पुरुषवेदं बेदयति यस्मिन् समये पुरुषवेदं वेदयति तस्मिन् समये स्त्रीवेदं वेदयति स्त्रीवेदस्य वेदनया पुरुषवेदं वेदयति पुरुषवेदस्य वेदनया स्त्रीवेदं वेदयति एवम् एकोऽपि च खलु जीव एकस्मिन् समये द्वौ वेदौ वेदयति स्त्रीवेदश्च पुरुषवेदश्चेति एवं हि परतीथिकाः मिग्रंथमीवदेवविषये कथयन्ति तत्र गौतमो भगवन्तं पृच्छति "से कहमेयं भंते एवं" तत् कथम् एतत् भदंत ! एवम् । हे भगवन् ! तत् उक्त प्रकारेण परतीथिकोपन्यस्तं किमेवं यथा कथयति तथा समवेदिति प्रश्नः। भगवानाह'गोयमा' इत्यादि " गोयमा " हे गौतम ! "जं णं सं अन्नउत्थिया एवं आइक्रांति" यत् खलु ते अन्य यूथिका एक्माख्यान्ति एवं पूर्वोक्तरूपेण कथयन्ति. पुरिसवेयं च " जिस समय जीव स्त्रीवेद को वेदताहै उसी समय वह पुरुषवेद को भी वेदता है, और जिस समय जीव पुरुष वेद को वेदता है उसी समय वह स्त्रीवेद को भी वेदता है। पुरुषवेद के वेदन से जीव स्त्रीवेद को वेदता है, (१) और स्त्रीवेद के वेदन से जीव पुरुषवेद को वेदता है (२) इस प्रकार से एक जीव एक समय में दो वेदों को वेदता है । एक स्त्रीवेद को और दूसरे पुरुषवेदको । इस तरह से परतीथिक जन निर्ग्रन्थ जीव देव के विषय में कहते हैं-सो गौतम स्वामी भगवान से पूछते हैं कि-' से कहमेयं भंते एवं ' हे भदंत ! ऐसा अन्यतीर्थिकजनों का कहना जैसा वे कहते हैं उस प्रकार से वह संभवित होता है क्या ? इसका उत्तर देते हुए भगवान गौतम स्वामी से कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! (जंणं तं अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति ) जो वे अन्यतीर्थिक जन ऐसा कहते हैं (जाव वेय च पुरिसवेय' च ) २ समये ७१ सीवह वहन ४२त। डाय छे ते સમયે તે પુરુષવેદનું પણ વેદન કરતો હોય છે. જે સમયે જીવ પુરુષવેદનું વેદન કરતે હોય છે તે સમયે તે સ્ત્રીવેદનું પણ વેદન કરતો હોય છે. (૧) પુરુષ વેદના વેદનથી જીવ સ્ત્રીવેદનું વેદન કરે છે અને (૨) સ્ત્રીવેદના વેદનથી જીવ પુરુષવેદનું વેદન કરે છે. આ રીતે જીવ એક સમયે બે વેદનું વેદન કરે छे-(१) सीवहन मन (२) पुरुषवेनु निथ भरीने गतिमा पनि यये। હોય, તેને વિષે પરતીર્થિકે ઉપરોક્ત જે મંતવ્ય ધરાવે છે તે વિષે ગૌતમ स्वामी भगवान महावीरप्रभुने पूछे छ-(से कहमेय भते एवं) महन्त ! अन्य તીથિકનું તેમના વિષેનું તે કથન શું સંભવિત છે? તેને મહાવીર પ્રભુ આ प्रमाणे उत्तर माछ-( गोयमा !) गीतम! ( ज ण त अन्नउस्थिया एवं आइक्वंति) ते मन्य तार्थि। मेरे ४ छ (जाब इस्थियव्य च पुरिसयेय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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