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॥ द्वितीयशतके पञ्चमोदेशकः प्रारभ्यते ॥ द्वितीयशतके चतुर्थमुद्देशकं निरूप्य तदनन्तरम् पञ्चमोद्देशको निरूप्यते. चतुर्थपञ्चमोद्दशकयोरयं संबन्धः चतुर्थो देशके इन्द्रियाणि उक्तानि. इन्द्रियवलादेव विषयभोगरूपा परिचारणासंभवेदित्यतस्तन्निरूपणाय तथा द्वितीयशतकादौ द्वार गाथायम् “ अन्नाथय " इति कथितमित्यन्ययूथिकवक्तव्यता प्रतिपादनाय च पञ्चमोद्देशकः प्रारभ्यते, तदनेन संबन्धेनायातस्य पञ्चमोद्देशकस्येदमादिम सूत्रम्-" अण्णउत्थिया" इत्यादि
मूलम्-अण्णउत्थियाणं भंते ! एवं आइक्खंति भासंति पन्नवेन्ति, परूवेंति, तं जहा-एवं खलु नियंठे कालगए समाणे देवब्भूएणं अप्पाणेणं से णं तत्थ णो अन्ने देवे. नो
दूसरे शतकका पांचवां उद्देशक प्रारम्भद्वितीयशतक में चौथे उद्देशक का निरूपण करके अब सूत्रकार पंचम उद्देशक निरूपण करते हैं । चतुर्थ उद्देशक का और इस पंचम उद्देशक का संबंध इस प्रकार से है - चतुर्थ उद्देशक में इन्द्रियां कही गई हैं - सो उन इन्द्रियों के बल से ही विषय भोगरूप परिचारणा हो सकती है। इसलिये उस विषय भोगरूप परिचारणा को निरूपण करने के लिये तथा द्वितीय - शतक की आदि में द्वार गाथा में ( अन्न उत्थिय) इस रूप से कथित अन्य - यूथिकों की वक्तव्यता को प्रतिपादन करने के लिये सूत्रकार ने इस पंचम उद्देशक का प्रारंभ किया है। इस संबंध से आये हुए इस पंचम उद्देशक का यह आदि सूत्र है-(अण्ण उत्थिया णं भंते !' इत्यादि।
બીજા શતકનો પાંચમો ઉદ્દેશક પ્રારંભ બીજા શતકના ચોથા ઉદ્દેશકનું નિરૂપણ પૂરું કરીને હવે સૂત્રકાર પાંચમા ઉદ્દેશકનું નિરૂપણ કરે છે. ચોથા ઉદ્દેશક સાથે પાંચમા ઉદ્દેશકને સંબંધ આ પ્રમાણે છે-ચોથા ઉદ્દેશકમાં ઈન્દ્રિયનું નિરૂપણ કર્યું છે. તે ઈન્દ્રિ દ્વારા જ વિષય ભેગરૂપ પરિચારણા થઈ શકે છે તેથી તે વિષય ભેગરૂપ પવિચારણાનું નિરૂપણ કરવા માટે તથા બીજા શતકની શરૂઆતમાં આવતી દ્વારગાથામાં (अन्न उत्थिय ) अन्य यूथि। ( अन्य भतवादी ) नुं प्रतिपाहन ४२वा भाटे સૂત્રકારે આ પાંચમે ઉદ્દેશક શરૂ કર્યો છે. આ પ્રકારના સંબંધથી શરૂ થતા या पायभा उद्देशनु पडे सूत्र मा प्रमाणे छ- (अण्ण उत्थिया णं भंते!).
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨