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________________ भगवतीसूत्रे पादक इन्द्रियाभिधपश्चदशपदस्य प्रथमउद्देशः सर्वोऽत्र वाच्य इति भावः। तत्र" संठाणं” इति संस्थानम् श्रोगेन्द्रियादीनां वक्तव्यम्. संस्थानमाकारविशेषः तच्च संस्थानमिदम्. श्रोनेन्द्रियं कदम्बपुष्पसंस्थितम् । चक्षुरिन्द्रियं मसूरकचन्द्रसंस्थितम्. मसूरदालिकावत् , चन्द्रवच्च गोलाकार चक्षुरिन्द्रियमिति,घाणेन्द्रियमतिमुक्तकचन्द्रकसंस्थितम्. अतिमुक्तकचन्द्रकइति पुष्पविशेषदलम्. तथा चाति मुक्तकचन्द्रकपुष्पविशेषदलसंनिभं घ्राणेन्द्रियमिति । रसनेन्द्रियं क्षुरपसंस्थितम्. क्षुरमं घासोत्पाटनाय प्रयुज्यमानः शस्त्रविशेषः 'खुरपा' इति भाषामसिद्धः' क्षुराकारवत् रसनेन्द्रियमिति । स्पर्शनेन्द्रियं नानाकारं भवतीति संस्थानविचारः? "बाहल्लं" इति-इन्द्रियाणां श्रोत्रादीनां बाहल्यं वक्तव्यम्. तच्चेत्थम्-सर्वाणीन्द्रियाणि अंगुलाऽसंख्येयभागवाहल्यानि २ ॥ “पोहत्तं" पृथुत्वम् इन्द्रियाणाम् , अच्छी तरह से समज में आ जावे । इन दोनों गाथाओं का अर्थ इस प्रकार से है - (संठाण) द्वार में इन्द्रियों का आकार कैसा होता है यह प्रकट किया है-जैसे-श्रोत्रेन्द्रिय का आकार कदंब पुष्प के समान, चक्षु इन्द्रिय का आकार मसूर की दाल के समान, और चन्द्रमा के समान गोल है । घाणेन्द्रिय का आकार अति मुक्तक पुष्प के समान है। रसनेन्द्रिय का आकार क्षुरप्र - खुरपा के जैसा है । स्पर्शन इन्द्रिय का आकार नियत नहीं है। यह अनियत आकार वाली होती है। बाहल्ल द्वार में श्रोत्रादिक इन्द्रियोंका बाहल्य-जाडापना प्रकट किया गया है जो इस प्रकार से है - जितनी भी इन्द्रियां हैं वे सब अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण मोटी हैं । पोहत्तद्वार में इन्द्रियों का पृथुत्व- लंबापना कहा गया है जो इस प्रकार से है-श्रोत्र, चक्षु और घ्राण इन का पृथुत्व अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण है । जिह्वा इन्द्रिय का पृथुत्व नौ भन्ने था-मान। म मा प्रमाणे थाय छ-( संठाण ) वाम छन्द्रियाना આકાર કેવા હોય છે તે બતાવ્યું છે. જેમકે શ્રોત્રેન્દ્રિય ને આકાર કદંબના પુષ્પ જે, ચક્ષુ ઈન્દ્રિયને આકાર મસૂરની દાળ જે અને ચન્દ્રમાં જે ગળ હોય છે. ધ્રાણેન્દ્રિયને આકાર મુક્તક પુષ્પ જે, રસના ઈન્દ્રિયને આકાર પૂરપી જે છે અને સ્પર્શેન્દ્રિયને કઈ ચોકકસ આકાર હોતે નથી ( બાહુલ્ય દ્વારમાં ) ઈન્દ્રિયની જાડાઈનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, તે વર્ણન આ પ્રમાણે છે– જેટલી ઇન્દ્રિયે છે તે બધી આગળના અસંખ્યાત ભાગ प्रभा nी छे. (पोहत्तद्वार ) Hi छन्द्रयाना हातानुं वन अथु छे. તે વર્ણન આ પ્રમાણે છે-શ્રોત્ર, ચક્ષુ અને ધ્રાણેન્દ્રિયની દીર્ઘતા એક આંગળના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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