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________________ - प्रमैयचन्द्रिा टीका श० २ ३०१ सू० १६ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ७३१ प्राणातिपातः प्रत्याख्यातः यावज्जीवं यावन मिथ्यादर्शनशल्यं प्रत्याख्यातं यावज्जीवम् इदानीमपिच श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यांतिके सर्व प्राणातिपात प्रत्याख्यामि यावज्जीवम् यावन् मिथ्यादर्शनशल्यं प्रत्याख्यामि यावज्जीवम् एवं सर्वमशनपानखादिमस्वादिमं चतुर्विधमप्याहारं प्रत्याख्यामि यावज्जीवम् यदपि च खल्विदं शरीरम् इष्टं कान्तं प्रियं यावत् मा स्पृशन्तु इति कृत्वा एतदपि चरकहा- (पुद्धिपि मए समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतिए जावज्जी वाए सव्वं पाणाइवाए पच्चक्खाए ) मैं पहिले भी श्रमण भगवान् महावीर के समीप यावज्जीव-जीवनपर्यन्त समस्त प्राणातिपात का प्रत्याख्यान कर चुका हूं, ( जाव ) यावत् (मिच्छादसणसल्ले पच्च क्खाए जावज्जीवाए ) मृषावाद से लेकर मिथ्यादर्शन शल्यतक का भी जीवनपर्यन्त प्रत्याख्यान कर चुका हूं ( इयाणि पि य णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवाए पच्चक्खामि ) अब भी मैं श्रमण भगवन्न् महावीर के समीप समस्त प्राणातिपात का प्रत्या ख्यान करता हूं ( जावज्जीवाए ) जीवन पर्यन्त और ( जावज्जीवाए ) जीवनपर्यन्त ही ( जाव ) यावत्-मृषावाद से लेकर (मिच्छा दसण सल्लं पच्चक्खामि ) मिथ्यादर्शन शल्यतक का प्रत्याख्यान करता हूँ ( एवं सव्वं असणं-पाणं-खाइमं-साइमं चउन्विहं पि आहारं जाव ज्जीवाए पच्चक्खामि ) इसी प्रकार से समस्त अशन, पान खाद्य जो चार प्रकार का आहार है उसका भी जीवन पर्यन्त प्रत्याख्यान करता भगवओ महावीरस्स अंतिए जावज्जीवाए सब पाणाइवाए पश्चक्रवाए) मे પહેલાં પણ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની સમક્ષ જીવનપર્યન્ત સમસ્ત પ્રાણાતિपातना प्रत्याभ्यान ४रेसा छे. (जाव मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए जावज्जीवाए) મિથ્યાવાદથી લઈને મિથ્યાદર્શન શલ્ય પર્વતના પણ જીવનપર્યન્તના મે प्रत्याभ्यान ४२i छ. (इयाणि पि य ण समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्व पाणाइवाए पञ्चक्खामि ) सत्यारे ५५] श्रम समपान मडावीरनी समक्ष समरत आयातिपातना प्रत्याभ्यान ३ यु.-( जावज्जीवाए ) पनपन्तत प्रत्याभ्यान ४३ छु. ( जावज्जीवाए जा मिच्छादसणसल्लं पञ्चक्खामि ) भृषा વાદથી લઈને મિથ્યા દર્શન શલ્ય પર્યન્તના જીવન પર્યન્ત પ્રત્યાખ્યાન કરું છું (एवं सव्व असणं-पाणं-खाइम-साइयं चउव्विहंपि आहार जावज्जोवाए पच्चक्खामि ) से प्रमाणे समस्त मशन, पान, माध अने स्वाध, ये सारे मा२ना माहानु ५ नन्त प्रत्याभ्यान ४३ छु. (जं प य શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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