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भगवतीसत्रे पुरिसक्कारपरकमे' उत्थानं कर्म बलं वीर्य पुरुषकारपराक्रमः तथा 'जाव य मे धम्मा. यरिए धम्मोवदेसए' यावच्च मे धर्माचार्यः धर्मोपदेशकः 'समणे भगवं महावीरे' श्रमणो भगवान महावीरः - जिणे' जिनः 'मुहत्थी' सुहस्ती पुरुषवरगन्धहस्ती 'विहरइ' विहरति । एतचिन्तनं भगवत्साक्षिको विधिर्महाफलो भविष्यति इत्यभिमायेण कृत मनेनेति । अथवा भगवनिर्वाणे शोकदुःखभाजनं मा भूवमहम् इत्यभिप्रायेण चिन्तितमनेनेति । तावता मे सेयं' तावता मम श्रेयः तावदेव मम श्रेयरकरं हितकरमित्यर्थः यत् ‘कल्लं' कल्यम्-आगामिनिदिने ‘पाउप्पमायाए ' प्रादुष्पभातायाम् प्रादुर्भविष्यत्प्रभातायाम् ' रयणिए' रजन्यां प्रातः काले इत्यर्थः
'फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियन्मि' फुल्लोत्पलकमलकोमलोन्मीलिते फुल्लं सामान्यतया विकसितं तच्चतत् उत्पलंचेति फुलोत्पलम् तच्च तथा कमलश्ववीर्य है, पुरुषकार है, पराक्रम है। इसलिये "तं जाव ता मे अस्थि उहाणे, कम्मे बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे" जबतक मुझ में ये सब उत्थान, कर्म, बल वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम बने हुए हैं, और 'जाव य मे धम्मायरिये धम्मोवएमए " जबतक मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक "समणे भगवं महावीरे " श्रमण भगवान महावीर जिन हस्ती -गन्धहस्ती के समान विचर रहे हैं "तावता मे सेयं " तबतक मेरे लिये श्रेयस्कर है कि मैं "कल्लं' आगामी दिन जब कि "पाउपभायाए रयणीए" गत्रि प्रभात के प्रकाश से युक्त हो जायेगी अर्थात् प्रातः काल हो जावेगा तथा “फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियाम्मि" जब वह प्रभात कमल के पत्र खिल जाय और कमल नामक बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे " म छे, म छ, पीय छ भने पुरुषार्थ ५। ५९४ छ. ' त जाव तामे अस्थि उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार परक्कमे" या सुधी भासमा उत्थान , म वाय अने पुरुषाय ५२१म भा छ भने “ जाव य मे धम्मायरिये धम्मोवएसए" ज्यां सुधी भा। पायाय, धोपदेश४, " समणे भगव' महावीरे " जिनेन्द्र भगवान, गन्धड. स्ती समान, श्रम समवान महावी२ विद्यमान छ. ‘तावता मे सेयं " त्यां सुधीमा मा प्रमाणे ४२वामा भा३ ४श्या छ-“ कल्लं" ती से, न्यारे 'पाउप्पभायाए रणीए' प्रात: tण थाय (त्रिन। मा२नी या प्राश साय) " फुल्लुप्पलकमल कोमलुम्मिलिय म्मि" न्यारे भय पत्र विसी જાય અને કમલ નામના હરણના બને કેમલ નયને જયારે વિકસિત થાય,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨