SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयवद्रकाटीका श०१ उ०६ सू० ४ लोकालोकादिपूर्वपश्चात्वे रोहानगारप्र० ५९ अणागयद्धा य पुब्धिपेते पच्छापेते-दोवि एए सासया भावा अणाणुपुब्बी एसा रोहा!' सर्वाद्धालापकं तु सूत्रकार एवाह-'पुल्लि भंते' इत्यादि । 'पुचि भंते लोयंते पच्छा सव्वद्धा' इति पदेन सर्रोऽपि सूत्रालापकः संग्राह्यस्तथाहि-"पुचि भंते लोयंते पच्छा सव्वद्धा, पुदि सव्वद्धा पच्छा लोयंते ? रोहा! लोयंते य सम्बद्धा य पुधिपेते पच्छापेते दोवि एए सासया भावा अगाणुपुबी एसा रोहा" इति । अथालोकविषये पाह-'जहा लोयंतेणं' इत्यादि । 'जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वेठाणा एते अलोयंतेणवि संजोएयव्या सव्वे" यथा लोकान्तेन संयोजितानि सर्वाणि स्थानानि एतानि एवमलोकान्तेनापि योजयितव्यानि सर्वाणि, येन प्रकालोकान्त और अनागताद्धा ये दोनों हैं और ये दोनों पहिले भी हैं और पश्चात् भी हैं, क्योंकि ये शाश्वत भाव हैं इसलिये इनमें पूर्व पश्चात् भाव नहीं है । सर्वाद्धालापक तो सूत्रकारने स्वयं ही (पुचि भंते ! लायंते पच्छा सव्वद्धा) इस सूत्र द्वारा कह दिया है। इसी तरह से और भी समस्त सूत्रालापक संयोजित कर लेना चाहिये । जैसे-हे भदन्त ! पहिले लोकान्त है और बाद में सर्वाद्धा है कि पहले सर्वाद्धा है और बाद में लोकान्त है ? हे रोह ! लोकान्त और सर्वाद्धा ये दोनों पहिले भी हैं और बाद में भी हैं । इनमें पूर्वापर क्रम नहीं है । क्योंकि ये दोनों शाश्वत भाव है। (जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते अलोयंतेणवि संजोएयव्वा सव्वे ) जिस तरह लोकान्त के साथ इन समस्त स्थानों को संयोजित किया गया है उसी तरह से इन समस्त स्थानों को अलोकान्त के साथ भी संयोजित कर लेना चाहिये । तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार से लोकान्त के साथ एक एक स्थानको जोड़कर सूत्रालापक किया है उसी तरह से अलोकान्त के અને પછી લેકાન્ત છે? હે રોહ ! લેકાન્ત અને અનાગતાદ્ધ બને છે. અને તે બંને પહેલાં પણ છે અને પછી પણ છે. કારણ કે તે બંને શાશ્વતભાવ છે. તે કારણે તેમાં પૂર્વાપર ભાવ (આનુપૂર્વી નથી. સર્વોદ્ધા આલાપક તે સૂત્રકારે पोते सूत्र (२॥ ४ो छ-(पुविभंते ! लायंते पच्छा सव्वद्धा) डे orय ! ५i લેકાન્ત છે અને ત્યારબાદ સર્વોદ્ધા છે, કે પહેલાં સર્વોદ્ધા અને ત્યાર પછી કાન્ત છે? હે રોહ ! કાન્ત અને સર્વોદ્ધા, એ બન્ને પહેલાં પણ છે અને પછી પણ છે. તે બને શાશ્વત ભાવ હોવાથી તેમનામાં પૂર્વાપર કમ નથી. (जहा लोय तेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते अलोय तेण वि संजोएयव्वा सो) જેવી રીતે કાન્તની સાથે ઉપર મુજબના તમામ સ્થાનોનું સર્જન કરવામાં આવ્યું છે. એવી જ રીતે અલકાન્તની સાથે પણ તે બધા સ્થાનેનું સજન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy