________________
भगवतीस्त्रे
६६० रात्रि दिवां, तृतीयां सप्तरात्रि 'दिवां, अहोरात्रि दिवां, एकरात्रिकीम् । ततः खलु स स्कन्दकोऽनगार एकरात्रिकी भिक्षुपतिमां यथामत्रं यावदाराध्य यौव श्रमणो भगवान् महावीरस्तोकोपागच्छति उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् , इच्छामि खलु भदंत, युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् गुणरत्नं संवत्सरं तपः कर्मोपसंपद्य विहर्तुम् । यथासुखं देवा(दोच्च सत्सराइं दियं ) दूसरी अर्थात् नौवीं सात दिनरात की (तच्चं. सत्तराइंदियं) तीसरी अर्थात्-दसवीं सात रात दिन की (अहोराइंदियं) चौथी अर्थात् ग्यारहवीं एक अहोरात्रकी ( एगराइयं ) पांचवी अर्थात् पारहवीं एक रात की, इस प्रकार इन बारह भिक्षुप्रतिमाओका उन स्कन्दक अनगार ने आराधन किया। (तएणं से खदए अणगारे) इसके बाद वे स्कन्दक अनगार (एगरोइयं भिक्खुपडिमं आहासुतं जाव आरा हेत्ता ) एक रातवाली बारहवी भिक्षुप्रतिमा की यथासूत्र यावत् आराधना करके ( जेणेव समगे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद) जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां आये। (उवामच्छित्ता) वहां आकर उन्होंने (समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ) श्रमण भगवान महावीर को वंदना की नमस्कार किया ( वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके ( एवं वयासी ) ऐसा कहा (इच्छामि गं भंते ।) तुम्भेहि-अभणुनाए समाणे शुगरयणं संबच्छरं तवो कम्नं उपसंपज्जि पडती-मेटी मामी सात त्रिहिवसनी, दोव सत्तराई दिय" मील मेटसे 3 नवमी सात दिवस रातनी, तच्च सत्तराई दिय" त्री भेट सभी सात त्रिहिवसनी, “ अहोराइं दिय" याथी-सेट मनियारभी मे हिवस रात्रिनी, “ एगराइय " पायभी मेट 3 ॥२भी मे त्रिनी, मा प्रमाणे मारे भिक्षु प्रतिभानु मा२धन यु. 'तरणं से खंदए अणगारे एगराइय " भिक्खुडिम अहासुतं जाव आराहेत्ता" त्या२ ४ २५ २रात्रिनी भाभी लिनुप्रतिमानुभूत्रानुसार २माराथन ४शने २४४४ २५ २ “जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागन्छइ" या श्रम लगवान मापी२ मि२१समान ॥ त्यो माय“ उवागच्छित्ता” त्या भावाने तेभो “ समणं भगव महावीर चंदइ नमसइ" श्रम लगवान महावीरने बहन नभ२४१२ ४ा. "वदित्तो नम सित्ता एव वयासो' १४ नमः॥२ ४ीने तेमणे मावी२ प्रभुने २१॥ प्रभारी प्रधु-( इच्छामि ण भंते ! तुटभेहिं अभणुन्नाए समाणे गुणरयण संवच्छर तोकम्म' उपसंपजित्ता पं विहरित्तए) 3 मावान् ! ने आ५
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૨