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________________ मेयचन्द्रिका टीका श. २ उ. १ सू. १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६१९ टीका-" एत्थ णं से खदए कच्चायणस्सगोत्ते " अत्र खलु स स्कंदकः कात्यायन गोत्रः " संयुद्ध" संबुद्धः सम्यग रूपेण बोधं प्राप्तः लोकजीवसिद्धिसिद्धमरणविषयकोत्तरं भगवतः सकाशात् संप्राप्य यथार्थविषयकज्ञानवान् भवति ततः संजातबोधो भगवति समुत्पन्नश्रद्धो भूत्वा “ समणं भगवं महावीर वंदइ नमंसइ" श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति " वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्षम, जितेन्द्रिय, शोधित-आत्मशुद्धि वाले और अनियाणे-निदान बंध से विहीन बन गये। अप्पुस्सुए- उत्कंठाभाव उनके भीतर बिलकुल नहीं रहा । अबहिल्लेसे-असंयम संबंधी मनोवृत्ति से पहिर्भूत हो गये सुसामण्णरए-श्रमणधर्म में तीन योगों से युक्त बन गये । दंते-क्रोधा दि कषायों पर उन्हों ने विजय प्राप्त कर लिया। इस प्रकार निर्दोष निग्रन्थ अनगार बनकर वे स्कन्दक मुनि इस जिनोक्त नैर्ग्रन्थ प्रवचन को आगे करके विचरने लगे ॥ सू-१३ ॥ ____टीकार्थ-" एत्थ णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते" लोक, जीव, सिद्धि, सिद्ध एवं मरण इन पदार्थों की सान्तता अनंतता के विषय में वे कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक भगवान से यथार्थ उत्तर प्राप्त कर जब अच्छी तरह से बोध को प्राप्त हो गये-यथार्थ विषयक ज्ञान संपन्न बन गये-तब भगवान के ऊपर उन्हें सच्ची श्रद्धा उत्पन्न हो गई। इस तरह सच्ची श्रद्धा से युक्त बन कर उन्होंने “समणं भगवं महाविरं वंदइ" शान्तिथी युत तेन्द्रिय “शोधित " यात्म शुद्धि पाणा, "भने मनिया" नियाथी २डित मन्या. “ अप्पुस्सुए” ते तुडसवृत्ति थी हित मन्या. " अबहिल्लेसे तो मसयभी वृत्तिथी तइन हित थया. “ सुसामण्णरए" भन, क्यन मने आया योगयी तेम्मा श्रम धर्ममा दीन या, "दते" તેમણે ક્રોધાદિ કષા પર વિજ્ય મેળવી લીધે, આ રીતે નિર્દોષ નિગ્રંથઅણગાર બનીને, સ્કદક મુનિ જિનેશ્વર ભગવાને કહેલ વિર્ઝન્ય પ્રવચનનું પાલન કરતા કરતા વિહરવા લાગ્યા. ___ -एत्थ ण से खंदए कच्चायणस्स गोत्ते" ४, ७, सिद्धि, સિદ્ધ, અને મરણની સાન્તતા (અત યુક્તતા) અને અનંતતાના વિષયમાં કાત્યાયન ગોત્રી સ્કંઇક ભગવાન મહાવીર વડે યથાર્થ ઉત્તર મળવાથી ભગવાન મહાવીર ઉપર તેમને સાચી શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઈ, અને તેઓ તે વિષયના યથાર્થ જ્ઞાની બન્યા. આ રીતે ભગવાન મહાવીરમાં તેમને શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થવાથી तेभो “ समण भगव' महावीर वंदइ” श्रम लापान महावीरने बहन । શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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