________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ ० १ सू० १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम्
६०९
तवान्तिके केवलमज्ञप्तं धर्म निशमयितुम् यथा सुखं देवानुप्रिय ! मा प्रतिबन्धं कुरु । तत्र खलु श्रमणो भगवान् महावीरः स्कन्दकाय कात्यायनगोत्राय तस्यै च महातिमहालयायै परिषदे धर्मे परिकथयति । धर्मकथा भणितव्या ततः स स्कन्दकः कात्यायनगोत्रः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्ट तुष्ट यावत् हृदय उत्थानेनोत्तिष्ठति उत्थाय श्रमणं भगवन्तं महावीरं उन्हें नमस्कार किया । ( वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी) वंदना नमस्कार कर फिर उन्होंने प्रभु से इस प्रकार कहा - ( इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अतिए केवलिपनतं धम्मं निसामित्तए) हे भदंत ! मैं आप से hafe प्रज्ञप्त धर्म सुनने की इच्छा करता हूं ( अहासुहं देवाणुप्पियामा परिबंध करेह) हे देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा अच्छा लगे वैसा करो इस शुभ कार्य में ढील मत करो । ( तरणं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणस्स गोत्तस्स तीसे य महइ महालयाए परिसाए धम्मं परिकts ) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर ने कात्यायन - गोत्रीय स्कन्दक को और उपस्थित उस बहुत बड़ी भारी सभा को धर्म का उपदेश दिया। ( धम्मका भाणियव्वा ) यही धर्मकथा कहनी चाहिये । इस धर्मकथा का वर्णन औपपातिकसूत्र के पूर्वार्ध में छप्पनवें सूत्र में देख लेना चाहिये । ( तरणं से खँदए कच्चायणस्स गोते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ जाव हियए उट्ठाए उडेइ श्रमण भगवान महावीर
भगवान महावीरने वहन उरी, नमस्र उया. ( बंदिता नमंसित्ता एवं वयासी ) वहन नभस्डर रीने तेभाणे महावीर प्रभुने या प्रमाणे ऽधुं - ( इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्ताए ) हे भगवान ! हु आपनी હું यासेथी ठेवसिप्र३पित धर्मनुं श्रवणु उरवानी च्छा रा ४ ( अहासुहं देवाणुपिया मा परिबंध करेह ) हे देवानुप्रिय ! आपने प्रेम सुम अपने तेम १रे। परंतु शुल अर्थभां दीस उश्शो नहीं ( तएण समणे भगवं महावीरे खंदयस कच्चायणस्स गोत्तस्स तोसे य महइ महालयाए परिसाए धम्मं परिकहेइ ) त्यार ખાદ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે કાત્યાયન ગેાત્રી સ્કન્દકને તથા ત્યાં ઉપસ્થિત घाणी ४ भोटी परिषहने धर्मना उपदेश मध्ये ( धम्मका भाणियव्वा ) અહી' ધ કથા કહેવી જોઇએ તે ધ કથાનું વર્ણન ઔપપાતિક સૂત્રના પૂર્વાંधना छप्पनभां सूत्रमांथी वांगी बेवु. ( तएण से खंदए कच्चायणस्स गोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ट जाव हियए उट्ठाए उट्ठेइ ) श्रम लगवान महावीर अलुने भुषेथी धर्मस्था सोलजीने तथा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨