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प्रमेयचन्द्रिटीका श० २ ० १ सू० १२ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५८१ लोकः, परमाणुषु मूक्ष्मस्कन्धेषु अमूर्तेषु च तत्सद्भावात् ' नत्थि पुण से अंते' नास्ति पुनस्तस्यान्तः, भावापेक्षया लोकस्यान्तो नास्तोत्यर्थः। उपसंहरनाह'से तं ' इत्यादि । ' से तं खंदया दव्यओ लोए स अंते खेत्तओ लोए स अंते कालभो लोए अणंते भावओ लोए अणंते ' तदेतत् स्कन्दक ! द्रव्यतो लोकः सांता क्षेत्रतो लोकः सांतः कालतो लोकोऽनंतो भावतो लोकोऽनंतः। हे स्कन्दक पूर्वोक्तयुक्तिभिः प्रतिपादितचतुर्विधलोकेषु द्रब्यक्षेत्राभ्यामन्तवत्वं लोकस्य, कालभावाभ्यां चानंतत्वमेव पुनललॊकस्येति भावः । इति प्रथमप्रश्नस्योत्तरम् । १ ।
लोकविषयकमनस्योत्तर दत्वा जीवविषयकप्रश्नस्योत्तरमाह-जे वि' इत्यादि जाता हैं। यह अगुरुलघुगुण भी अनन्त पर्याय वाला होता है। इसी तरह गुरुलघुगुण बादर स्कंधोंमें पाया जाता है, इस अपेक्षा गुरुलघुगुण भी अनन्त पर्यायवाला होता है। इस तरह भावसे लोक का कभी भी अंत नहीं होता है। अतःवह भाव से लोक अनन्त कहा गया है। यही बात " नत्थि पुण से अंते" इस सूत्र पाठ द्वारा व्यक्त की गई है। अब इस विषय का उपसंहार करते हुए भगवान् स्कन्दक से कहते हैं कि ' से तं खंदया! वो लोए स अंते, खेत्तओ लोए सअंते, कालओ लोए अणंते, भावओ लोए अणते' हे स्कन्दक! इस तरह विचार करने पर द्रव्य से लोक सान्त-अन्तसहित है, क्षेत्र से लोक सान्त-अन्त सहित है, काल से लोक अनन्त है और भाव से लोक अनन्त है। इस प्रकार से यह प्रथम प्रश्न का उत्तर है। __ लोकविषयक प्रथमप्रश्न का उत्तर देकर अब श्रमण भगवान् महाસ્કંધમાં હોય છે. તે અગુરુલઘુગુણ પણ અનંત પર્યાયે વાળો હોય છે. ગુરુલઘુગુણ બાદર (સ્થૂળ) ક ધમાં હોય છે. ગુરુલઘુગુણ પણ અનંત પર્યા વાળો હોય છે. આ રીતે ભાવની અપેક્ષાએ લેકને કદી પણ નાશ થતો નથી. તેથી ભાવની અપેક્ષાએ લેકને અનંત (અંત રહિત ) કહ્યો છે. એજ વાત " नत्थि पुण से अंते" मा सूत्रपा४ १९ व्यरत ४२वामी मावी छ. ३ मा विषयन। ५सडा२ ४२di भगवान महावी२ २४४ने ४ छ -“से त्त खंदया! दधओ लोए स अंते, खेत्तओ लोए स अंते, कालओ लोए अणंते, भावओ लोए अणते " , २४.६४ ! माशते विया२ ४२तां द्रव्यनी अपेक्षा લોક સાન્ત (અંતયુક્ત) છે, ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ પણ લેક સાન્ત છે. પણ કાળની અપેક્ષાએ લેક અનંત (અંતરહિત) છે, અને ભાવની અપેક્ષાએ પણ લેક અનંત છે. આ પ્રકારને તમારા પહેલા પ્રશ્નનો ઉત્તર છે.
લોક વિષેના પહેલા પ્રશ્નને ઉત્તર આપીને હવે શ્રમણ ભગવાન મહા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨