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________________ प्रमेयचन्द्रिटीका श० २ ० १ सू० १० स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५४३ त्याय शिपमेव प्रत्युपगच्छति, 'पज्जुवगच्छित्ता' प्रत्युपगत्य 'जेणेव खंदए कच्चायणस्स गोत्ते तेणेव उवागच्छइ ' यशैव स्कन्दकः कात्यायनगोत्रस्ौवोपागच्छति ‘उवागच्छित्ता खंदयं कच्चायनस्स गोतं एवं वयासी' उपागम्य स्कन्दकं कात्यायनगोत्रमेववादीत् 'हे खंदया' हे स्कन्दक ! आगम्यताम् , भगवत्समीपे समागमनस्य कल्याणहेतुत्वात् , 'सागयं खंदया' स्वागतं स्कन्दक ! हे स्कन्दक ! आवागमनमत्रसुशोभनम् , भगवत्संपर्कस्य कल्याणकारकत्वादिति 'सुसागयं सो इस प्रकार की आशंका यहां ठीक नहीं है। कारण कि गौतम ने जो ऐसा किया वह आगम व्यवहारी होने के कारण से किया तात्पर्य कहने का यह है कि भगवान के मुख से गौतम को यह ज्ञात हो ही चुका था कि स्कन्दक अगार से अनगार अवस्थावाला बन जावेगा-अतः स्वयं रागवाले होने के कारण उसकी उस स्थिति के प्रति पक्षपात हो जाने से, तथा महावीर प्रभु के ज्ञानातिशय को प्रकट करने के निमित प्रभु द्वारा प्रतिपादित यात को स्कन्दक से कह कर उनके प्रति उसका बहुमान हो इस अभिप्राय से गौतम का स्कन्दक के सामने जाना दोषावह नहीं है ! इसलिये ( अब्भुद्वित्ता ) गौतम उठकर (पच्चुवगच्छइ) स्कन्दक के समक्ष गये । (पच्चुवगच्छित्ता) स्कन्दक के समक्ष जाकर फिर वे (जेणेव खंदए कच्चायणस्स गोते तेणेव उवागच्छद) जहां पर कात्यायन गोत्री स्कन्दक थे वहां गये । ( उवागच्छित्ता ) वहां जाकर उन्हों ने खंदयं कच्चायणस्स गात्तं एवं वयासी ) उन कात्यायन गोत्री स्कन्दक से ऐसा कहा (खंदया) हे स्कन्दक आओ (साग) तुम्हारा स्वाग है कारण આશંકા અસ્થાને છે કારણ કે ગૌતમસ્વામીએ એવું જે કર્યું તે આગમવ્યવહારી હેવાને કારણે કર્યું છે કહેવાને ભાવાર્થ એ છે કે ગૌતમસ્વામીએ ભગવાન મહાવીરને મુખે એ વાત સાંભળી હતી કે સ્કન્દક આગાર અવસ્થાને ત્યાગ કરીને અણગાર અવસ્થા અંગીકાર કરશે. તેથી તેમના પ્રત્યે પ્રેમ ઉત્પન્ન થવાથી અને તેની તે અવસ્થા તરફ પ્રદ ઉદ્દભવવાથી. તથા મહાવીર પ્રભુના જ્ઞાના તિશયને પ્રકટ કરવાના ઉદ્દેશથી, પ્રભુ વડે કંદકના વિષે જે ગુપ્ત વાત પિતાની પાસે પ્રકટ કરવામાં આવી હતી તે વાત સ્કન્દકને કહીને પ્રભુ પ્રત્યે તેનામાં માનની લાગણી જાગૃત કરવા માટે ગૌતમસ્વામી સ્કન્દકની સામે જાય તેમાં દેષ ४४ागतु नथी. तेथी “अब्भुद्वित्ता" हीन “पच्चुवगच्छ" गौतमस्वामी २४४४ी पासे गया, “पच्चुवगच्छित्ता” २४४४नी पासे ४४ने तेभो “ खदयं कच्चायणस्सगोत्त एवं वयासी" आत्यायन गोत्र ते २४४४ २ मा प्रभारी छु “खदया " २४४ पधारे। “ सागयं" तमा स्वागत है। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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