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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०१ सू० ९ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५३५ बहुसंपाप्तः, अत्यन्तसमीपमार्गसमागतः, बहुसंप्राप्तता च विश्रामादिकारणतः आरामादिगतोपि संभवति, अत उच्यते ' अद्धाणपडिबन्ने' अध्वपतिपन्नः, अध्वानं प्रतिपन्नः मार्गे चलन्नित्यर्थः 'अंतरापहें वट्टइ ' अंतरापथि वर्तते, अत्यन्त समीपे वर्तते, अतस्त्वं 'अज्जेवणं दच्छसि गोयमा' अद्यैव खलु द्रक्ष्यसि गौतम ! हे गौतम ! यः खलु तव पूर्वपरिचितः स्कन्दकस्तं त्वमचैव-अधुनैव स्वल्पेनैव कालेन तव दृष्टिपथे समागमिष्यतीति भावः ‘भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ' भदंत ! इति सम्बोध्य भगवान गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते नमस्यति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' वंदित्वा नमस्यित्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत्-पृष्टवान्-' पहूणं भंते ' प्रभुः समर्थः खलु भदंत ! ( बहु संपत्ते) कि वह अत्यन्त समीप के मार्ग में आचुका है। यह बहु संप्राप्तता विश्राम आदि कारण की वजह से बगीचा आदि में भी गये हुए में हो सकती है सो इसके लिये कहा गया है कि (अद्धाणपडिवन्ने) वह अभी मार्ग मे ही चल रहा है। विश्रामादि के निमित्त बगीचा आदि में नहीं गया है । अतः वह “अंतरापहे वट्टइ” बीच रास्ते में ही है। बिल कुल समीप आचुका है। इसलिये तुम उसे (अज्जेव णं दच्छसि ) अभी ही देखोगे। तात्पर्य यह है कि हे गौतम ! तुम अपने पूर्वपरिचित स्कन्दक को अभी ही बहुत थोडे ही समय के बाद दृष्टिपथ में आया हुआ देख लोगे। (भंते त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसह ) हे भदन्त । ऐसा कह कर भगवान महावीर को वंदनी की
और उन्हे नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी वदना नमस्कार करके फिर उन्होंने उनसे ऐसा पूछा ( भंते ! खंइए कच्चाय४२१॥ भाटे ४ह्यु छ , “ बहुसंपत्ते" ते अत्यन्त न७२ भागे मापी गयो છે, અહીં એમ માનવાને કારણ ન રહે કે તે કઈ નજીકના ઉદ્યાન વગેરેમાં विश्राम स रह्यो छे, ते मत माटेधुं, "अद्धाण पडिवन्ने" ते ७ २२॥ પર ચાલી રહેલ છે–વિશ્રામ વગેરે માટે કઈ બાગ વગેરેમાં ગયેલ નથી અને તેથી ते “अंतरापहे वइ” २स्तामा छ. उपार्नु प्रयोग से छत ४४४ निरंतर પંથ કાપીને આ જગ્યાની સમીપે આવી ચૂક્યો છે. તેથી હે ગૌતમ! તું તેને "अज्जेवणं दच्छसि " भ ने शीश. मेट गौतम! तु ता॥ धूप पश्ििथत ने थोडी ०४ पारमा प्रत्यक्ष निडाजीश. " भंते ति भगव गोयमे समणं भगव महावीर वदइ नमसइ" भगवन् ! सj समाधन शन लगवान गौतम श्रम समपान मापीरने वाहन ४२, नम२४.२ ४वदित्ता
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨