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________________ ५30 भगवतीसूत्रे कथं वा कियचिरेण वा ? । एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रावस्ती नाम नगरी आसीत् वर्णकः । तत्र खलु श्रावस्त्यां नगर्यां गर्दभालस्यान्ते. वासी स्कन्दको नाम कात्यायनगोत्रः परिव्राजकः परिवसति, तदेव यावत् यत्रैव ममान्तिकं तत्रैव प्राधारयत् गमनाय स खलु अरागतो बहुसंप्राप्तः अध्वप्रतिपन्नोऽन्तरापथि वर्तते अद्यैव द्रक्ष्यसि गौतम ! । भदंत ! इति भगवान् गौतमः श्रमणं स्कन्दकको (से काहे वा, कहं वा केवच्चिरेण वा) हे प्रभो !मैं उसे कहांपर किस तरह से और कितने समय के बाद देखूगा ? (एवं खलु गोयमा) तब प्रभु ने कहा है गौतम ! ( तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नयरी होत्था ) उस काल में और उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थीं। (वण्णओ ) वर्णक (तस्थ णं सावस्थीए नयरीए ) उस श्रावस्ती नगरी में (गद्दभालस्स अते वासी) गर्दभालका शिष्य (खंदए नाम ) स्कन्दक नामका कि जिसका (कच्चायणस्स गोत्ते) गोत्र कात्यायन है (परिव्वायए परिवसइ) परिव्राजक रहता है (तंचेवजाव जेणेवममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए) इस विषय का समस्त वर्णन पहिले कहा जैसा ही जानना चाहिये,यावत् वह स्कन्दक परिव्राजक. जहां मैं हूं उस तरफ आने के लिये प्रस्थित हुआ है। ( से णं अदुरागए बहुसंपत्ते अद्वाणपडिबन्ने अंतरावहे वट्टइ ) अब वह जिस स्थान पर अपन सब है वहांसे लगभग वह बहुत दूर नहीं है-यहत नजदीक आ चुका है-बीच रास्ते में ही है (गोयमा) हे गौतम ! (अज्जेव णं दच्छ. A. ( से काहे वा कहं वा, केवच्चिरेण वा ) 3 प्रल ! दुतेने यां, वी रीत मन सा समय पछी नेश ? ( एव खलु गोयमा ! ) त्यारे प्रमुख युं गौतम ! ( तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नयरी होत्था) ते आगे मने ते सभये श्रावस्ती नामनी नगरी ता. (वण्ण ओ ) तेनुं वन २५ पाना प्रभारी सभा ( तत्थ सावत्थीए नयरीए ) ते श्रावस्ती नगरीमा ( गहभालस्स अंतेवासी काच्चायणस्सगोत्ते ) मासन शिष्य आत्यायन पत्री (खदए नाम परिव्वायए परिवसइ) २४४४ नामना परिवा४४ २९ छे. (तं चेत्र जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए) २. विषयतुं समस्त पनि આગળ કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું. તે સ્કન્ડક પરિવ્રાજક મારી પાસે આવવા भाट २वाना 4 यूथ्यो छे. ( से णं अदृरागए बहुसंपत्ते अद्धाणपडिवन्ने अंतरावहे वट्टइ) वे ते २१ स्थानथी गड ६२ नथी. धणे। १ न भावी गये। छ-२-तानी १२ये १ छे. ( गोयमा!) 3 गौतम ! ( अज्जेत्र णं दच्छसि) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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