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________________ ५२८ भगवतीसूत्रे परिव्राजका वसथात् परिव्राजकाश्रमात् 'पडिनिक्खमइ ' प्रतिनिष्क्रामति निस्सरति, 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निस्सृत्य 'तिदंड-कुंडिय-कंचणिय-करोडिय-भिसिय-केसरिय-छग्णालय-अङ्कुसय-पवित्तय-गणेत्तिय-हत्थगए' त्रिदण्डकुण्डिका-कांचनिका-करोटिका-ऋषिका-केशरिका-पण्नालकांकुशकपवित्रकगणे. त्रिकाहस्तगतः त्रिदण्ड कादीनि वस्तूनि हस्ते गतानि स्थितानि यस्य स तथा गृहीत सर्वोपकरण इत्यर्थः, 'छत्तोवाहणसंजुत्ते' छत्रोपानत्संयुक्तः 'धाउरत्तवत्थपरिहिए' धातुरक्तवस्त्रपरिहितः, परिहितधातुरक्तवसः धातुना गैरिकेण रक्तं वस्त्रं परिधायेत्यर्थः, स्कन्दकः 'सावत्थीए नयरीए' श्रावस्त्याः नगर्याः 'मज्झं मज्झेणं' मध्यं मध्येन 'निग्गच्छइ ' निर्गच्छति 'निग्गच्छित्ता' निर्गत्य 'जेणेव कयंगला नयरी' यत्रै कृतंगला नगरी, 'जेणेव छत्तपलासए चेइए' यत्रैव छत्रपलाशकं चैत्यम्-उद्यानम् 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' यौव श्रमणो भगवान् महावीरः विराजते । तेणेव ' तौव 'पहारेत्थ गमणाय ' प्रधारितवान् गमनाय, भगवत्समोपे गन्तुं प्रस्थित इत्यर्थः ।। सू० ८ ॥ इतश्च भगवत्समीपे यज्जातं तदाह-'गोयमा ' इत्यादि । छाते को तानकर और पगरखोंको पैरों में पहिन कर (धाउरत्तवत्थपरिहिए) एवं धातुरक्त वस्त्रों को शरीर पर धारण कर वह स्कन्दक परिव्राजक (सावत्थीए) नयरीए श्रावस्ती नगरीके (मज्झं मज्झेणं) बीचों बीचके रास्ते से होकर (निग्गच्छइ) निकला और (निग्गच्छित्ता) निकलकर (जेणेव कयंगला नयरी ) जहां कृतंगला नगरी थी (जेणेव छत्तपलासए चेइए ) उसमें जिस तरफ छत्र पलाशक चैत्य था उसमें भी (जेणेव समणे भंगवं महावीरे) जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे (तेणेव पहारेत्थ गमणाय ) उस और उसने चलनेका निश्चय किया अर्थात् भगवान के पास जाने के लिये वह प्रस्थित हुआ ॥ सू०८॥ भाथे मढीन मने परामा ! ५3.77 धाउरत्तवत्यपरिहिए” भने धातु२४तथी રંગેલાં વસ્ત્રોને (ભગવા વસ્ત્રોને) શરીર પર ધારણ કરીને સ્કન્દક પરિવ્રાજક " सावत्थीए नयरीए" श्रावस्ती नगरी “ मज्झं मझेणं " मध्यन। भागे धन “निगाच्छा" नीज्यो. "निग्गच्छित्ता" त्यांथी नीजीने "जेणेव कयंगला नयरी" या तसा नगरी ती, " जेणेव छत्तपलासए चेइए' ते नगरीनी पार छत्र ५६०५४ नामनु चैत्य (धान) तु, “जेणेव समणं भगवौं महावीरे" भने त थैत्यमा यो श्रम मगवान महावीर मिसता त, “ तेणेव पहा रेत्थ गमणाय " ते २६वानी भो निश्चय या मेटले ते त२६ पाने भादवाना थया. ॥ सू८॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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