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________________ ५२६ भगवतीसूत्रे गम्यत्वात् हेतवो लोकस्य सांतत्वानन्तत्वादय एव तान् ‘ पसिणाई' प्रश्नान् प्रश्नविषयखात् प्रश्ना एते एव लोकसांतत्वानन्तत्वादयस्तान् ‘ कारणाई' कारणानि, उपपत्तिमात्र कारणाम् , उपपत्ति विषयत्वादेतान्येव लोकसान्तत्वानन्कत्वादीनि कारणानि 'वागरणाई ' व्याकरणानि-व्याक्रियमाणत्वात्-निर्णीयमानत्वात् व्याकरणानि लोकसांतत्वा नन्तत्वादीनि 'पुच्छित्तए' प्रष्टुम् , प्रष्टुं श्रेय इति पूर्वेणान्वयः, 'त्ति कटु' इति कृत्वा, इति मनसि विचिन्त्य, ' एवं संपेहेइ' एवं संप्रेक्षते, एवं-यथोक्तप्रकारं भगवद्वन्दनादिकरणं संप्रेक्षते-पर्यालोचयति, * संपेहित्ता' संप्रेक्ष्य पर्यालोच्य — जेणेव परिवायगावसहे ' यौव परि सान्तता अनन्तता रूप हेतुओं को (पसिणाई ) प्रश्नों के विषय भूत होने के कारण लोकोदिकों की इन सान्तता अनन्तता रूप प्रश्नों को (कारणाइं) उपपत्तिके विषय भूत होनेसे इन लोककी सान्तता अनन्ततारूप कारणों को, (वागरणाइं) एवं व्यक्रियमाण होनेसे लोककी सान्तता अनन्ततारूप निर्णय करनेयोग्य व्याकरणों को (पुच्छित्तए) पूछूतो (सेयं खलुमें) मेरा कल्याण है। यह बात निश्चित है । (त्तिकद्दु एवं संपेहेइ) इस कारणको लेकर उसने भगवानको वंदना आदि करनेका विचार किया 'संहिता' विचारकरके फिर वह (जेणेव परिव्यायगावसहे)जहां परिव्राज कों कामठ था (तेणेव उवागच्छई) वहां गया (उवागच्छिता) वहाँ जाकर के वहांसे उसने (तिदंडं) त्रिदण्डको परित्राजकों के दण्ड विशेष को कुंडीय' कमण्डलु को 'कंचणियं रुद्राक्ष मालाको (करोडियं च) मिट्टीके भाजन विशेष को (मिसियं च) आसन विशेष को (केसरियं च) मुखादिक को ३५ तुमी. ' पासिणाई” प्रश्नोन विषयभूत जापान २ साप पोरनी सान्त मथ। मनन्त ३५ ते प्रश्नो. “ कारणाई" उत्पत्तिना विषय ३५ हापाथी त सो वगैरेनी सान्तता अथवा मनन्तता ३५ ४।२।. ' वागरणाई" અને વ્યાકિયમાણ હોવાથી લેકની સાન્તતા રૂપ વ્યાકરણે તાત્પર્ય એ છે કે તે પાંચે પ્રશ્નોના ઉત્તર. ભગવાન મહાવીર સ્વામી પાસેથી જ મારે સમજવા नये अव विया२ २४४४॥ मनमा मन्यो “ त्ति कटु एवं संपेहेइ " આ કારણે તેણે ભગવાન મહાવીરને વંદન વગેરે કરવાનો સંકલ્પ કર્યો. "संपेहिता" मेव। स४८५ ४शन तसा "जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छई" ज्या परिवाना म तो त्यां गया. "उवागच्छित्ता" त्यां न तेभरे त्यांथी "तिदंड' हि परिवाने (पा२९ ४२वानामा २ ) “ कुडिय" भ, कंधणिय" रुद्राक्षनी मात, " करोडियं च" भाटीने पात्र, “ भिसि यंच" मासन, “केसरियं च" माद वगेरेने सा६ ४२१॥ माटेने ४५४ाने। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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