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________________ - - ५०० भगवतीसूत्रे छाया-तस्मिन् काले तस्गिन् समये श्रमणो भगवान महावीरो राजगृहाअगरात् गुणशिलकात् चैत्यात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहार विहरति, तस्मिन् काले तस्मिन् समये कृतंगला नाम नगरी आसीत् , वर्णका तस्याः खलु कृतंगलायाः नगर्याः बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे छत्रपलाशकं नाम चैत्यमासीत् वर्णकः ततः श्रमणो भगवान महावीर उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः यावत्ससिद्धत्व-संसार का सर्वथा क्षय-ये सब कहा है अब उन्हीं विषयों को तथा भिन्न विषयों को प्रतिपादन करने के निमित्त स्कंदक मुनि के चरित्र को सूत्रकार कहते हैं-'तेणं कालेणं' इत्यादि । सूत्रार्थ-( तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में और उस समय में (समणे भगवं महावीरे ) श्रमण भगवान महावीर (रायगिहाओ नयराओ) राजगृह नगर के (गुणसिलाओ चेइयाओ) गुणशिल चैत्य से (पडिनिक्खमइ ) निकले। (पडिनिक्खमित्ता) निकल कर (बहिया ) बाहर के ( जणवयविहारं विहरइ ) देशों में उन्हों ने विहार किया। (तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में और उस समय में ( कयंगला नाम नगरी होत्था) कृतंगला नाम की नगरी थी (वण्णओ) यहां इसका वर्णन चंपा नगरी के समान जानना चाहिये। (तीसे णं कयंगलाए नयरीए ) उस कृतंगला नगरी के ( बहिया) बाहर ( उत्तरपुरथिमे दिसिभाए ) उत्तरपूर्वदिशा के कोने में-ईशानकोने में (छत्तपलासए णामं चेहए होत्था) छत्रपलाशक नामका चैत्य था (वण्णओ) સિદ્ધત્વ- સંસારને સર્વથા ક્ષય- એ વિષયનું કથન કરવામાં આવ્યું છે. હવે એજ વિષયનું તથા તેમના કરતાં ભિન્ન વિષયનું પ્રતિપાદન કરવા માટે સૂત્રકાર સ્કન્દમુનિનું ચરિત્ર કહે છે " तेणं कालेणं" त्यादि सूत्रार्थ-(तेणं कालेणं तेणं समएणं)ते आणे मन त समये (समणेभगव महावीरे) श्रम मावान भावी२ ( रायगिहाओ नयराओ) २००४ नगरना (गुणसिलाओ चेइयाओ) पशिस यैत्यमाथी (धानमाथी) पडिनि. क्खमइ) नीvया. (पडिनिक्खमित्ता) त्यांथी नीजीने (बहिया) मारना ( जणवयविहार विहरइ) प्रदेशमा तसा विय२ साश्या. (तेणं कालेणतेणं समएणं) ते आणे भने ते समये (कयंगला नाम नयरी होत्था) नामनी नगरी ती. ( वण्णओ) वर्णन यानगरी प्रमाणे ४ समन्यु (तीसे गं कयंगलाए नयरीए)तेत सा नगरानी ( बहिया) मा२ (उत्तर. पुरथिमे दिसिभाए) शान मुामा ( छत्तपलासए णाम चेहए होत्था ) छत्र पता: नामर्नु चैत्य धान तुं (वण्णओ) तेनुं वर्णन पूलद्रना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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