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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २३०१सू०१ उच्छ्वासनिःश्वासस्वरूपनिरूपणम् ४४९ 'समणस्स भगवओ महावीरस्स' श्रमणस्थ भगवतो महावीरस्य 'जेढे अंतेवासी' ज्येष्ठोऽन्तेवासी अग्निभूतिः गौतमः 'जाव पज्जुवासमाणे ' यावत् पर्युपासीनः यावत्पदेन-प्रथमशतकपथमोद्देशकीयसप्तमाष्टमसूत्रस्थ —जायसड़े' इत्यारभ्य 'पंजलिउडे' इत्यन्तं सर्व संग्राह्यम् , वन्दननमस्कारादिकं कृत्वा भगवन्तं सेवमानः ‘एवं वयासी' एवमवादीत् ‘एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण अगदीत् पृष्टवान् 'जे इमे भंते' ये इमे भदन्त ! 'बेइंदिया' द्वीन्द्रियाः ' तेइंदिया' त्रीन्द्रियाः 'चउरिदिया' चतुरिन्द्रियाः 'पंचिंदिया ' पञ्चेन्द्रियाः ‘जीवा' जीवाः प्राणिनः सन्ति ' एएसिणं' एतेषां खलु 'आणामं वा पाणामं वा' अनाम वा आभ्य. न्तरिकम् , पाणामं वा बाह्यम् ' उस्सासं वानिस्सासं वा' उच्छ्वास वा निश्वास काल में और उच्छ्वास निःश्वास आदि के प्रश्नोद्भाव के समय में ऐसा अर्थ लिया गया है । (समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी) इन पदों का अर्थ स्पष्ट है। (जेटे अन्तेवासी) पद से ज्येष्ठ-प्रधान-शिष्य गौतम स्वामी लिये गये हैं । (जाव पज्जुवासमाणे) में जो यह (यावत्) शब्द आया है । उससे (प्रथमशतक के प्रथम उद्देशक में जो सातवां आठवां सूत्र है, उनमें जो ( जायसड़े ) यहां से लगाकर (पंजलिउडे) तक का पाठ है वह पाठ यहां ग्रहण किया गया है ऐसा जानना चाहिये। वन्दना नमस्कार आदि करके गौतम ने प्रभु की सेवा करते हुए (एवं वयासी ) इस प्रकार से पूछा-(जे इमे भंते ! हे भदन्त ! जो ये (बेइं. दिया ) दो इन्द्रियवाले जीव (तेइंदिया ) तीन इन्द्रियवाले जीव ( चउ. रिंदिया) चार इन्द्रियवाले जीव (पंचिंदिया) पांच इन्द्रिय वाले (जीवा) जीव-प्राणी हैं ( एएसिणं) सो इनका ( आणामं ) भीतर का (वा) આ પદે વડે અહીં ” સભા વિસર્જન થયા પછીનો કાળ અને ઉચ્છવાસ नि:श्वास वगेरेना प्रश्नी पूछ। ने। समय" सेवामां मा०ये छ. “ समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्रे अंतेवासी " से श्रम भगवान महावीर स्वामीना न्ये शिष्य गौतम स्वाभी. “जाव पज्जुवासमाणे " मां 'जाव" ( यावत् ) ५६ छ तन। १९ पडसा शतना पडा उद्देशना सातमा भने मामा सूत्रमान।” “जायसड्ढे " ५४थी १३ 30२ “पंजलि उडे " सुधीन। પાઠ ગ્રહણ કરાયેલ છે તેમ સમજવું. વંદણું નમસ્કાર વગેરે કરીને પ્રભુને गौतम स्वामी विनयपू' ' एवं वयासी” मा प्रमाणे ५७यु " " जे इमे भंते ! भगवन् ! 12 "बेइंदिया ” मेन्द्रियोवा “ तेइंदिया " धन्द्रियाणा, “ चउरिदिया ” २ छन्द्रियो भने “ पंचिंदिया " पाय छन्द्रियावा. '' जीवा " व छ. “ ए ए सिणं" तमना “ आणाम" : भ ५८ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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