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भगवतीचे __ छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नाम नगरमासीत् , वर्णकः स्वामी समवसृतः पर्षनिर्गता, धर्मः कथितः, परिषत् प्रतिगता, तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी यावत् पर्युपासीन एवमवादीत् , ये इमे भदंत ! द्वोन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रिया उन्हीं जीवों के उच्छ्वास आदि का प्रतिपादन किया गया है-अतः इस सम्बन्ध को लेकर यह द्वितीय शतक का यह प्रथम उद्देशक कहा गया है। उसका यह ( तेणं कालेणं इत्यादि प्रथम सूत्र है-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि।
सूत्रार्थ--( तेणं कालेणं तेणं समएणं ) उस काल में और उस समय में (रायगिहे णामं नयरे होत्था) राजगृह नाम का नगर था (वण्णओ) वर्णकः ( सामी समोसढे ) स्वामी-श्री महावीर प्रभु-वहां पधारे (परिसा णिग्गया ) उसकी देशना सुनने के लिये सभा निकली (धम्मो कहिओ) प्रभुने धर्मोपदेश दिया (परिसा पडिगया) उसे सुनकर सभा पीछे गई । (तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में और उस समय में (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के (जेट्टे अंतेवासी ) ज्येष्ठ अन्तेवासी-शिष्य (जाव पज्जुवासमाणे ) यावत् पयुपासना करते हुए ( एवं वयासी) इस प्रकार बोले-(जे इमे भंते ! बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया जीवा ) हे भदन्त ! जो ये एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय, चौ इन्द्रिय और पंचेन्द्रिय આ ઉદ્દેશકમાં જીવોનાં ઉફ઼વાસ વગેરેનું પ્રતિપાદન કરાયું છે. આ બીજા શતકના ઉદેશકને આ પ્રકારને સંબંધ આગળના ઉદ્દેશ સાથે છે. તેનું પ્રથમ સૂત્ર "तेण कालेण" त्याहि छे.
सूत्रा--(तेणं कालेणं तेणं समएण) ते आणे भने ते सभये (रायगिहे णामं नयरे होत्था ) ॥४ड नमर्नु ना२ तु ( बण्णओ) तेनुं वर्णन सीपाति सूत्रमा वसी पानाशी. मा४ छे. (सामी समोसढे) ते नगरमा मावान महावीर स्वामी ५धार्या. ( परिसा णिग्गया) तमनी ट्रेशन सागवान भाट परिषद नीजी (धम्मो कहिओ) प्रमुख धर्भापहेश माथ्यो. (परिसा पडिगया) ते सinutन परिष४ ५छी २७. ( तेण कालेण तेण समएण) त आणे भने ते समये (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रम मावान महावीरन। (जेटे अंतेवासी) भेटा मन्तवासी शिष्य (जाव पज्जुवासमाणे) ( यावत) प्युपासना ४शन (एव वयासी) माप्रमाणे मादया.
(जे इमे भंते ! बेइंदिया इंदिया, चउरिदिया जीवा एएसि णं आणाम वा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨