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________________ ४३८८ भगवतीसूत्रे परतीथिकमतस्य मिथ्यात्वं भवतीति बोध्यम् । विरुद्धयोः पदार्थयोरेकपुरुषेणैकदा संपादयितुमशक्यत्वात् । नहि गच्छन् जिनदत्तः स्थितो भवति, तद्वदिहापि कषाय जनितकषायाजनितक्रिययोः परस्परं विरुद्धत्वादेकपुरुषेण एकसमये क्रियाद्वयस्यानुष्ठातुमशक्यत्वेन मिथ्या तन्ममिति संक्षेपः ॥ मू० ३ ।। उपपातविरहविचार:अनन्तरप्रकरणे क्रियाया निरूपणं कृतम् , क्रियावतां चोत्पादो भवति इति क्रियानिरूपणे सति क्रियामूलकस्योत्पादः स्मृतो भवति, उत्पादस्मरणे सति तद्विरक्षोत्पादविरहस्य स्मरणं जातमिति तदेवाह-निरयगई' इत्यादि । मूलम्-निरयगई णं भते ! केवइयं कालं विरहिया उव. वाएणं पण्णता ? गोयमा !जहणणेणं एक समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ता, एवं वकंतीपयं भाणियव्वं निरवसेसं, सेवं भंते सेवं भंते ति जाव विहरइ ॥ सू० ४ ॥ पढमसमये दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥१-१०॥ कारण किसी तरह संभवित नहीं होता है। अतः इस प्रकार की मान्यतावाला परतोथिकों का मत मिथ्या है। ऐसा जानना चाहिये। क्यों कि एक ही काल में परस्पर विरुद्ध दो पदार्थों का एक पुरुष द्वारा संपादन होना अशक्य है । (जाता हुआ देवदत्त बड़ा है ) जैसे किसी के इस कथन को कोई सत्य नहीं मान सकता है वैसा ही यह कथन है। इसे सत्य कैसे माना जा सकता है अतः जैसे जानारूप क्रिया और स्थित होने रूप क्रिया एक ही काल में एक पुरुष में परस्पर में विरुद्ध होने के कारण संभवती नहीं है, उसी प्रकार से कषाय जनित ओर अकाषाय जनित इन दो क्रियाओ को परस्पर विरूद्ध होने के कारण ये दो क्रियाएँ एक ही काल में एक ही पुरुष द्वारा अनुष्ठातु-कर्तु-(करने योग्य) नहीं हो सकती हैं । अतः इस प्रकार की क्रिया द्वय की एकसाथ करने की मान्यतावाला सिद्धान्त मिथ्या है ऐसा जानना चाहिये ॥सू ३॥ મિથ્યા છે, કારણ કે એક જ સમયે પરસ્પરથી વિરૂદ્ધ એવી બે ક્રિયાઓનું એક પુરુષ વડે સંપાદન થવું અશક્ય છે. જેમ કે જઈ રહેલે દેવદત્ત ઉભે છે” એ કથન કેઈને પણ સત્ય નહીં લાગે, કારણ કે જવાની ક્રિયા અને ઉભા રહેવાની ક્રિયા પરસ્પર વિરૂદ્ધ કિયાઓ છે. તે તે બને કિયા એક જ પુરુષ વડે એક જ સમયે સંભવી શકતી નથી. એ જ પ્રમાણે કષાયજનિત અને કષાય રહિત એ બે કિયાઓ (સાંપરાયિકી અને ઈર્યાપથિકી) પરસ્પર વિરૂદ્ધ હોવાને કારણે એક જીવ વડે એક જ સમયે સંભવી શકતી નથી. તેથી તે બે ક્રિયાઓ એક જ સાથે થાય છે, એવી માન્યતા મિથ્યા સમજવી. . સૂ-૩ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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