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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१ उ०१० सू०३ क्रियाविषये प्रश्नोत्तरनिरूपणम् ४३१ यस्मिन् समये ऐपिथिकों प्रकरोति तस्मिन् समये सांपरायिकी प्रकरोति,यस्मिन् समये सांपरायिकी प्रकरोति तस्मिन् समये ऐर्यापथिकों प्रकरोति, ऐर्यापथिक्याः प्रकरणतया साम्परायिकी प्रकरोति, साम्परायिक्याः प्रकरणतया ऐर्यापथिकी प्रकरोति, एवं खलु एको जीव एकस्मिन् समये द्वे क्रिये प्रकरोति, तद्यथा-ऐ-पथिकी च सांपरायिकी च, तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? गौतम ! यत्खलु अन्यतीथिका दो किरियाओ पकरेंति ) यावत् एक जीव एक समय में दो क्रियाओं को करता है । ( तं जहा ) वे दो क्रियाएँ इस प्रकार से हैं (ईरियाच. रियं च संपराइयं च) एक एपिथिकी दूसरी सांपरायिकी सो जीव इन दो क्रियाओ को करता है । (जं समयं इरियावहियं पकरेइ) जिस समय में एपिथिकी क्रिया करता है। (तं समयं संपराइयं पकरेइ) उस समय में सांपरायिकी क्रिया करता हैं ( जं समयं सांपराइयं पकरेइ ) जिस समय में सांपरायिकी क्रिया करता है (तं समयं इरियावहियं पकरेइ ) उस समय में ऐर्यापथिकी क्रिया करता है (इरियायहियाए पकरणयाए संपराइयं पकरेइ, संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पकरेड) ऐर्यापथिकी क्रिया करने से सांपरायिकी क्रिया करता है, सांपरायिकी क्रिया करने से ऐर्यापथिकी क्रिया करता है । ( एवं खलु एगे जीवे एगेणं स. मएणं दो किरियाओ पकरेइ ) इस तरह एक जीव एक समय में दो क्रियाओं को करता है। तं जहा इरियावहियं च संपराइयं च) एक ऐर्यापथिकी क्रिया और दूसरी सपिरायिकी क्रिया को । ( से कहमेय भंते !
किरियाओ पकरेति ) मे १ मे समये में लिया। ४२ छे. (तं जहा) ते मे या मा प्रमाणे छ-ईरियावहिय च सपराइय च) (१) पिथिक सन (२) सापशथिली 4 मा भने लिया। ४२ छ, (जं समय इरियावहियं पकरेइ) न्यारे ७१ ध्या५थिजीठिया रत। डाय छ त्यारे तं समय संपराइयं पकरेइ) सां५२॥यिी GिAL ५५५ ४२ते. डाय छे. (जौं समय संपराइयं पकरेइ त समयं इरियावहिय पकरेइ ) २ समये ७१ सांप।यिी या ४रत। जाय छे ते सभये या५थिली या प ४२ते। डीय छ, ( इरियावहियाए पकरणयाए संपराइयं पकरेइ, संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पकरेइ) ध्याપથિકી ક્રિયા કરવાથી સાંપરાવિકી ક્રિયા કરે છે સાંપરાયિકી ક્રિયા કરવાથી ध्यपथिय ४२ छ. (एव खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ) भारत मे १४ समये मठियामा ४२ छ-(तं जहा इरियावहिय च सपराइयं च) मे ध्या५थिली या अने भी सांप4ि5 पा. (से कहमेय भंते !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨