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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१ ० १० सू० २ स्वमतस्वरूपनिरूपणम् ३९९ एकतः संहन्येते, एकतः एकस्वरूपतया परमाणुद्वयस्य संहननं (संमीलनं) भवत्येव संहननकारणस्नेहस्य तत्रापि सद्भावादिति, अत्र कारणं पृच्छति-'कम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति' कस्मात् कारणात् द्वौ परमाणुपुद्गलौ एकतः संहन्येते? उत्तरमाह-'दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए ' द्वयोः परमाणुपुद्गलयोरस्ति स्नेहकायः, ' तम्हा-दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति' तस्मात् कारणात् द्वौ परमाणुपुद्गलौ एकत संहन्येते, यस्मात् कारणात् एकस्मिन्नपि परमाणौ संघातकारणं स्नेहकायो विद्यते तस्मात् कारणात् द्वयोरपि परमाणुपुद्गलयोः संहननं भवत्येव न तु त्रयाणामेव चतुर्णामेव संघात इति भावः, द्वयोः परमाण्वोः पोग्गला एगयओ साहणंति ) दो परमाणु पुद्गल एकरूप से मिल जाते हैं। एक रूप से मिलना ही स्कन्ध की उत्पत्ति है। यह उन दोनों का संमेलन विना संघात के कारणभूत स्नेहगुण के नहीं हो सकता है। इसलिये यह मानना चाहिये कि उन दो पुद्गल परमाणुओं में स्नेहगुण अवश्य २ है और यह स्नेहगुण उन परमाणुओं के संमेलन से वहां पर प्रकट हो गया सो बात नहीं है। यह तो वहां एक २ परमाणु में स्वतंत्र रूप से पहिले से ही मौजूद है। यहां शिष्य कारण को पूछता हुआ प्रभु से प्रश्न करता है कि ( कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति) हे भदन्त ! इसमें क्या कारण है जो दो पुद्गल परमाणु आपस में मिलकर स्कन्द पर्याय को उत्पन्न करते हैं । प्रभु इसका उत्तर देते हुए शिष्य से कहते हैं कि-( दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए ) उन दो पुद्गल परमाणुओं में स्नेहकाय है (तम्हा) इसलिये (दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ) दो परमाणु पुद्गल चिकाश होने के एगयओ साहणंति " मे ५२मा युरो २४३थे भी तय छे. मे ३ भण તેનું નામ જ સ્કની ઉત્પત્તિ છે. તે બન્નેને સંઘાત; (સંગ) સંઘાતના કારણરૂપ નેહગુણના સદ્દભાવ વિના સંભવી શકતો નથી. તેથી એમ માનવું જોઈએ કે તે બે પુક્લ પરમાણુઓમાં નેહગુણ અવશ્ય હોય છે. અને તે નેહગુણ તે પસ્માણુઓના સાગથી ત્યાં પ્રકટ થઈ ગયે એવું પણ નથી. ते गुरु प्रत्ये ५२भाशुभां पडेथी ८ मापूर ता. “कम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति " ॥ ४॥२0 ५२मा पुस ५२९५२ साथे સંગ પામીને સ્કધપર્યાયને ઉત્પન્ન કરે છે? આ પ્રકારના ગૌતમના પ્રશ્નને सपास साता प्रभु ४३ छ “दोण्ह परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए" ते में ५२भाशुभां स्नेडायनो सहला डाय छ “ तम्हा" तथा "दो परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति" मे ५२२मा ५ थी। डाबाने २0 मे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨