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________________ ---- - प्रमेयचदिन्क टीका २० १ १०९ सू० २ गुरुत्वादिस्वरूपनिरूपणम् २७५ कार्मणशरीरस्यागुरुलघुद्रव्यात्मकत्वात् चतुर्थपदेनागुरुलघुकेनैव संग्रहसंभवात् , 'मणजोगो वयजोगो चउत्थएणं पएणं' मनोयोगो वचोयोगश्चतुर्थ केन पदेन, मनोयोगवचोयोगौ चतुर्थपदेन वक्तव्यौ तद्रव्याणामगुरुलघुत्वादिति, 'कायजोगो तइएणं पएणं' काययोगस्तृतीयेन पदेन, काययोगः कार्मणवर्जितस्तृतीयपदेन गुरुलघुकेन ज्ञातव्यस्तद्रव्याणां गुरुलघुत्वादिति ‘सागारोव ओगो अणागारोवोगो चउत्थपएणं' साकारोपयोगः अनाकारोपयोगश्चतुर्थपदेन इमो द्वावपि उपयोगौ चतुर्थपदेनागुरुल. घुकेन ज्ञातव्यौ, उपयोगा अरूपित्वेन अगुरुलघवो भवंति इति भावः। 'सबदव्या सव्यपएसा सत्रपज्जवा जहा पोग्गलात्थिकाओ' सर्वव्याणि सर्वप्रदेशाः सर्व. पर्यवाः यथा पुद्गलास्तिकायः, तत्र सर्वव्याणि धर्मास्तिकायादीनि सर्वप्रदेशास्तेकार्मणशरीर चतुर्थपद से अगुरुलघुरूप जानना चाहिये । क्यों कि वह अगुरुलघुद्रव्यात्मक होता है । ( मणजोगों वइजोगो चउत्थएणं पएणं) मनयोग, वचनयोग ये दोनों चतुर्थपद जो अगुरुलघुपद है उससे कहना चाहिये । क्यों कि इनके द्रव्य अगुरुलघु होते है। काय जोगो तइएणं पएणं) काययोग तृतीयपद जो गुरुलघु पद है उससे कहना चाहिये । यहां कार्मण काययोग छोड़ देना अर्थात् वह गुरुलघुक पद से नहीं कहना चाहिये। बाकी के ६काययोग तृतीय पद से कहना चाहिये। क्यों कि इनके द्रव्य गुरुलघु होते हैं। (सागरोवओगो अणागारोवओगो चउत्थपएणं ) साकारोपयोग-ज्ञान, अनाकारोपयोग-दर्शन ये दोनों चतुर्थपद से – अगुरुलघुपद से कहना चाहिये । क्यों कि उपयोग अमूर्त होते हैं । इस कारण वे अगुरुलघु होते हैं । ( सव्वदव्वा, सव्वपएसा, सव्वपज्जवा, जहा पोग्गलात्थिकायो) सर्वद्रव्य, सर्वप्रदेश, सर्वपर्यायें, पुद्गलास्तिकाय की तरह जानना चाहिये। धर्मास्तिकायादिक સમજવું, અહીં ચોથા પદથી “અગુરુલઘુ” ગ્રહણ કરાયું છે, કારણ કે કામણ शश२ मगुरुसाधु द्रव्यात्म डाय छे. (मणजोगो वइजोगो च चउत्थेणं पएणं) भनायोग मने क्यनयोग, को अन्नने मगुरुतधुय छे. ( कायजोगो तइएणं पएणं) याने गुरुसधु ४३ मे, डी ए ययागने ७९] કરવાનો નથી એટલે કે કાશ્મણ કાયયોગને ગુરુલઘુ કહેવું જોઈએ નહીં. બાકીના છ કાયયેગને ગુરુલઘુ કહેવા જોઈએ, કારણ કે તેમનાં દ્રવ્ય ગુરુલઘુ डाय छे. (सागरोवओगो अग्णागारोवओगो चउस्थपएण) सापयोग-ज्ञान, અનાકારે પગ-દર્શન, એ બનેને અગુરુલઘુ કહેવા જોઈએ, કારણ કે ઉપગ भभूत जाय छे, तेथी तो शुरुसधु डाय छ, ( सव्वदव्बा, सव्वपएसा, सवपज्जवा, जहा पोगलास्थिकायो ) सब द्रव्य, सब प्रदेश, भने सर्व पर्यायाने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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