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भगवती सूत्रे दवाई पडुच्च ' गुरुकलघुकद्रव्याणि औदारिकादीनि चत्वारि शरीराणि प्रतीत्य = आश्रित्य ' णो गुरुए ' नो गुरुकः, ' णो लहुए ' नो लघुकः, पुद्गलास्तिकायः औदारिकादिशरीरापेक्षया न गुरु र्न वा लघुरिति भावः, किन्तु 'गुरुलहुए ' गुरुलघुकः ' णो अगुरुयलहुए ' नो अगुरुलघुकः, 'अगुरुयल हुयदव्वाई' पडुच्च ' अगुरुलघुकद्रव्याणि प्रतीत्य, अगुरुलघु द्रव्याणि - कार्मणद्रव्याणि तानि आश्रित्य णो गुरुए णो लहुए णो गुरुय लहुए ' नो गुरुकः नो लघुको नो गुरुलघुकोऽपि तु 'अगुरुवलहुए ' अगुरुकलघुकः पुद्गलास्तिकाय इति । 'समया कम्मागि चत्रण 'समयाः कर्माणि च चतुर्थपदेन, समयाः = कालविभागा अमूर्त्ताः, कर्माणि= कार्मणवगणारूपाणि एषामगुरुलघुत्वम्, 'कण्हलेस्सा णं भंते ' कृष्णदवाई पडुच्च णो गुरुए, णो लहुए, गुरुयलहुए, णो अगुरुयल हुए ) गुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय न गुरु हैं, न लघु है न अगु
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लघु है किन्तु गुरुलघु है। यहां गुरुलघुक द्रव्य से औदारिक आदि चार शरीर लिये गये हैं । इन चार शरीर की अपेक्षा से पुद्गास्तिकाय न गुरु है, न लघु है, न अगुरुलघुरूप है किन्तु वह गुरुलघुरूप है । (अगुरुयल हुयदवाई पडुच्च णो गुरुए, णो लहुए, णो गुरु लहुए अगुरुल हुए) अगुरुलघु द्रव्य की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय न गुरु है न लघु हैं, और न गुरुलघु है किन्तु अगुरुलघुरूप है। यहां अगुरुलघुद्रव्य से कार्मणद्रव्य लिये गये हैं। क्योंकि कार्मगद्रव्य अगुरुलघुरूप होता है यह बात अभी २ प्रकट की जा चुकी है । अतः कार्माण द्रव्य की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय अगुरुलघुरूप प्रकट किया है । ( समया कम्माणि य चउत्थपए) समय कालविभाग, और कार्माण वर्गगारूप कर्म ये सब अगुरु
उत्तर- ( गुरुयलहुयदव्बाई पडुच्च णो गुरुए णो लहुए, गुरुयल हुए, णो अगुरुयल हुए ) गुरु लघु द्रव्योनी अपेक्षामे युद्गदास्तिाय गुरु पशु नथी લઘુ પણ નથી, અગુરુલઘુ પણ નથી, પરન્તુ ગુરુલઘુ છે, અહીં ગુરુલઘુ દ્રવ્યથી ઔદારિક વગેરે ચાર શરીર લેવામાં આવ્યાં છે. તે ચાર શરીરની અપેક્ષાએ પુદ્દગલાસ્તિકાય ગુરુ પણ નથી, લઘુ પણ નથી, અગુરુલઘુ પણ નથી, પરંતુ गुरुसघु३५ ४ छे. ( अगुरुयलहुयदव्वाई पडुच्च णो गुरुए, णो लहुए, जो अगुरुयल हुए) अगुरुलघु द्रव्यनी अपेक्षा पुछ्गसास्तिआय गुरु पशु नथी, लघु પણ નથી, ગુરુલ પણ નથી. પરંતુ અગુરુલઘુ છે, અહીં અગુરુલઘુ દ્રવ્યથી કામ દ્રવ્ય લેવામાં આવેલ છે. કારણ તે કામ દ્રવ્ય અગુરુલઘુરૂપ હોય છે, એ વાત હજી હમણાં જ પ્રકટ કરવામાં આવી છે. તેથી કાણુ દ્રવ્યની અપેक्षामे युङ्गसास्तिप्रायने अगुरुलघु३५ मतान्युं छे. ( समया कम्माणि य चउत्थ पण ) समय-भणविभाग भने शशुवर्ग अगुरुलघु उर्भ छे.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨