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________________ २६८ भगवतीसूत्रे पहितेपि ते गुरुत्वादयो न भवन्तीति भावः । ' से तेणटेणं' तत् तेनार्थेन गौतम ! एवं कथ्यते यत् नारका न गुरुका न वा लघुकाः किन्तु गुरुकलघुका नो अगुरुलघुका इति, ' एवं जाव वेमाणिया' एवं याबद्वैमानिकाः असुरकुमारादारभ्य वैमानिकदेवपर्यन्त नारकदण्डकवदेव प्रकारो योजनीय इति, ‘णाणत्तं जाणियव्वं सरीरेहिं ' नानात्वं ज्ञातव्यं शरी रैः, वैमानिकादिषु गुरुत्वलघुत्वादि विचारे न सर्वथा सादृश्यमेव किन्तु वैलक्षण्यमपि विद्यते तद्वैलक्षण्यं शरीरद्वारेण ज्ञातव्यम् , यस्य यानि शरीराणि तस्य तानि शरीराणि ज्ञात्वा असुरकुमारादि सूत्राणि पठितव्यानीति भावः । तथाहि असुरादिदेवास्तु नारकवदेव नारकतुल्याः है । और यदि उपादि में गुरुत्व आदि नहीं हों तो तादृश उपाधि से उपहितद्रव्य में भी गुरुत्व लघुत्व नहीं होते हैं । ( से तेगटेणं ) इस कारण से हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि नारक न गुरु हैं और न लघु हैं किन्तु गुरुलघुक भी हैं और अगुरुलधुक भी हैं । ( एवं जाव वेमाणिया) इसी प्रकार से असुरकुमार से लेकर वैमानिक देवपर्यन्त नारकदण्डक की तरह ही समझना चाहिये । (णाणत्तं जाणियव्वं सरी रेहिं ) परन्तु जो विशेषता है वह शरीरों को लेकर है । तात्पर्य यह है कि वैमानिक देवादिकों में जब गुरुत्व लघुत्व आदिका विचार किया जाता है तब उनमें सर्वथा समानता ही नहीं आती है किन्तु भिन्नता भी आती है और यह भिन्नता उनमें शरीर द्वार से आती है ऐसा जानना चाहिये अतः जिस के जो २ शरीर हैं उसके उन २ शरीरों को समझ कर असुरकुमार आदि सूत्र पढना चाहिये । जैसे-असुर ન હોય તે તે પ્રકારની ઉપાધિથી ઉપહિત દ્રવ્યમાં પણ ગુરુવ લઘુત્વ હતું नथी, ( से तेटेणं ) 3 गौतम ! ते ॥२णे में ये ४धुं छे 3 ना२४ ७वो ગુરુ પણ નથી, લઘુ પણ નથી, પરંતુ ગુલઘુ છે અને અગુરુલઘુ પણ છે, ( एव जाव वेमाणिया ) ना२४६३ॐनी म २४ असु भाथी सन वैभानि। मत्या२ सुधीनी शुरुता, धुता वगेरेना विषयमा सभाबु, (णाणत्तं जाणियव्य सरीरेहि) ५५४ २ विशेषता छ ते शरी२नी अपेक्षा छ, ता५य से छ વિમાનિક દેવ વગેરેમાં જ્યારે ગુરુવ લઘુત્વ વગેરેને વિચાર કરવામાં આવે ત્યારે તેમનામાં બધી રીતે સરખાઈ હતી નથી, ભિન્નતા પણ હોય છે, તે ભિન્નતા શરીરની અપેક્ષાએ રહેલી હોય છે, તેથી જેનાં જેવાં જેવાં શરીર હોય છે તેના તેવા તેવા શરીરને સમજીને અસુરકુમાર વગેરે સૂત્રોનું કથન કરવું જોઈએ, જેમકે-અસુરકુમાર વગેરે દેવે તે નારકે જેવાં જ છે, તેથી વૈકિય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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