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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श० १ उ. ८ सू० ३ मृगघातकपुरुषादिनिरूपणम् १९५ लगतियुक्तप्रदेशे इत्यर्थः, 'नूमति वा' नूमे वा, नूमे-अन्धकारयुक्ते कन्दरादा. वित्यर्थः । ' गहणंसि वा ' गहने वा, तृणगुल्मलताक्षादिसमुदाये — गहणविदुग्गंसि वा ' गहनविदुर्गे वा, पर्वताचेकदेशावस्थितवृक्षवल्ल्यादिसमुदाये 'पव्ययंसि वा' पर्वते वा 'पव्ययविदुग्गंसि वा ' पर्वतविदुर्गे वा, पर्वतसमुदाये इत्यर्थः, 'वर्णसि वा ' वने वा, एकजातीय वृक्षसमुदायो वनम् , तस्मिन् । ' वणविदुग्गंसि वा' वनविदुर्गे वा, अनेकप्रकारकक्षसमुदाये, 'मियवित्तिए' मृगवृत्तिकः, मृगै. वन्यपशुविशेषैर्वृत्तिर्जीविका यस्य स मृगवृत्तिकः, । मृगपालकोपि मृगवृत्तिः स्यादित्यतआह–'मियसंकप्पे ' मृगसंकल्पः, मृगमारणाय कृतः संकल्पो निश्चयो येन स मृगसंकल्पः, मृगमारणसंकल्पवानित्यर्थः, चलचित्ततयापि मृगवधायब सायो भवेदित्यत आह–' मियपणिहाणे' मृगपणिधानः, मृगवधाय कृतंप्रणिधानं चित्तैकाग्र्यं येन स मृगपणिधानः, मृगवधैकचित्ता, 'मियवहाए गंता' मृगवधाय गन्ता-गमनशीलः ' एते मिय त्ति काउं' एते मृगाः इति कृत्वा ' अण्णयरस्स' अन्यतरस्य — मियस्स' मृगस्य — वहाए ' वधाय-मारणाय 'कू अथवा-घास आदि समुदाय से व्याप्त प्रदेश में (वलयंसि वा) गोलाकार नदी के जल से कुटिल गति वाले स्थान में ( नूमंसि वा) अथवा अंधकार युक्त कन्दरादिरूप प्रदेश में ( गहणंसि वा ) अथवा तृणगुल्म, लता, वृक्ष आदिकों से युक्त स्थान में (गहणंविदुग्गंसि वा ) अथवा पर्वतादि के एक देश में स्थित ऐसे वृक्षलतादि समुदायवाले स्थान में (पव्वयंसिवा ) अथवा किसी पर्वत के ऊपर (पव्वयविदुग्गंसि वा) अथवा अनेक पर्वतो पर (वर्णसिवा)अथवा एक जाती के वृक्षों के समुदाय वाले स्थान में (वणविदुग्गंसि वा) अथवा अनेक जातीके वृक्षों के समुदायाकीर्ण स्थान में (गंता) गया-वहां जाकर उसने ( एते मियत्ति काउं अण्णयरस्स मियस्स वहाए कूटकासं उद्दाइ ) ये ही मृग हैं ऐसा ख्याल करके-निश्चय पोथी माहित प्रदेशमा, ( वलयंसि ) गोमा।२ नहाना थी जुटिस स्थानमा ( नूमंसि वा ) अथवा मध२ वाजी शुसाना स्थानमा ( गहणं सि वा) मथवा तृण, शुदम, el, वृक्ष वगेरेथी युश्त स्थानमा, (गहण विदुग्गंसि षा) अथवा ताहिना मे मागमा मावस ता मने वृक्षोन समुदाय पामा स्थानमा ( पव्वयंसि वा ) अथवा पर्वत ५२ ( पव्वयविदुग्गंसि वा) अथवा भने ५वत। ५२, ( वर्णसिवा ) अथवा मे ४ जतन वृक्षान। समुदाय र स्थानमा, (वणविदुग्गंसि वा) मथ। मने तना वृक्षाना समुदायथी माछोहित स्थानमा ( गंता) गया. त्याने तेथे (एते मियत्तिकाउ अण्णयरस्स मियस्स वहाए कूटफास उद्दाइ) 4. भृगे। ४ थे सेवा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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