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भगवतीसूत्र भा. २ का विषयानुक्रमणिका
अनुक्रमाङ्क विषय
पृष्ठाङ्क पहले शतकका छट्ठा उद्देशा १ सूर्यदर्शन की वक्तव्यता और सूर्य के प्रकाशक्षेत्रका निरूपण १-१६ २ लोकान्त अलोकान्त और स्पर्शनका निरूपण
१७-२७ ३ पाणातिपातादि १८ अठारह पापस्थान क्रियाका वर्णन २८-३९ ४ लोक और अलोकादि विषयमें ' रोह' नामके अनमार और महावीरस्वामी के प्रश्नोत्तरका निरूपण
४०-६३ ५ लोकस्थितिका निरूपण
६४-७७ ६ जीव और पुद्गलके बन्धका निरूपण
७८-८४ ७ सूक्ष्म स्नेहकायका निरूपण |
८५-८८ सातवां उद्देशक ८ सातवे उद्देशेके विषयोंका निरूपण
८९-९२ ९ नैरयिकोंकी उत्पत्यादिका निरूपण
९३-११२ १० नैरयिकोंकी उद्वर्तना आदिका निरूपण
११३-१२३ ११ विग्रहगतिका निरूपण
१२४-१३० १२ च्यवनसूत्रका निरूपण
१३१-१३५ १३ गर्भके स्वरूपका निरूपण
१३६-१५४ १४ गर्भस्थ जीवके गत्यन्तरका निरूपण
१५५-१७४ आठवे उद्देशेका प्रारंभ १५ आठवे उद्देशाके विषयोंका विवरण १६ एकान्तबालके स्वरूपका निरूपण
१७६-१८२ १७ एकान्तपण्डितके स्वरूपका निरूपण
१८३-१९२ १८ मृगघातक पुरुषादिके स्वरूपका निरूपण
१९३-२०० १९ मृगपातकपुरुषादिके क्रियास्वरूपका निरूपणम् २०१-२१८
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨