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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ १०८ सू०१ चमरेन्द्रस्य सुध सभादिनिरूपणम् ९९९ आयामविष्कंभेण 'पन्नासं जोयणसहस्साई पंच य सत्ताणउय जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं' पञ्चाशयोजनसहस्राणि-पञ्च च सप्तनवतिश्च योजनशतानि किश्चिद्विशेषोनम् परिक्षेपेण-पश्चाशत्सहस्त्र-पञ्चशतसप्तनवतिपमाणमुपरितलं किंचिद्विशेषोनम् 'सबप्पमाणे णं वैमानिकपमाणस्स अद्धं नेयच्वं' सर्वपमाणेन वैमानिकपमाणस्या नेतव्यम्-ज्ञातव्यम् एतस्य खलु प्रकरणस्यायमर्थः चमरचचाराजधान्याम् प्राकारमासादसभादिसर्ववस्तूनाम् आयामोच्छ्यादि ममाणं सौधर्म-वैमानिकविमान-प्रासादप्राकारसभादि-वस्तुगतप्रमाणापेक्षयार्धममाणकमेव ज्ञातव्यम्-तथाहि सौधर्मवैमानिकदेवानां विमानप्राकारो योजनानां कंभ की अपेक्षा सोलह हजार योजन का है । ( पन्नास जोयणसहस्साई पंच य सत्ताणउ य जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं) उपरितल के परिक्षेप का प्रमाण कुछ कम पचास हजार पांच सौ सतानवे (५०५९७) योजन का है । (सव्वप्पमाणेण वेमाणियप्पमाणस्स अद्धं नेयव्वं ) वैमानिक देवों की अपेक्षा से यहां पर सब वस्तुओं का प्रमाण आधा जानना चाहिये । इस प्रकरण का यह अर्थ है-चमर चंचा राजधानी में प्राकार, प्रासाद तथा सभा वगैरह जो वस्तुएँ हैं उनकी ऊचाई आदि का जो प्रमाण वह सौधर्म विमान के जो प्रासाद, प्राकार, सभा आदि हैं उनके प्रमाण की अपेक्षा आधा है। जैसे सौधर्म देवलोक में रहने वाले देवों के विमानों के प्राकार की उँचाई ३०० तीनसो योजन की है। तथा चमरेन्द्र की नगरी के प्राकार की उँचाईका प्रमाण १५० देडसो योजनका है। इस तरह प्राकार यहां का सौधर्मदेवलोक के विमान के प्राकार की अपेक्षा आधा जानना चाहिये। पडाणा स २ योजननी छ. (पन्नासजोयणसहस्साई पंच य सत्ताणउ य जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेण) ७५२न। माना परिक्ष५ ( परिक) ક૬૯૭ પચાસ હજાર પાંચસે સત્તાણું ચેાજન કરતાં થોડો ઓછો છે. (सव्वापमाणे ण वेमाणियप्पमाणस अद्ध नेयव्य) वैभानि: । ४२di અહીં સઘળાં પ્રમાણ અર્ધા સમજવા જોઈએ. કહેવાને ભાવાર્થ એ છે કે ચમરચંચા રાજધાનીના કેટ, પ્રાસાદ, સભા વગેરેનું માપ ( ઉંચાઈ આદિનું પ્રમાણ ) સૌધર્મ વિમાનના કેટ, પ્રાસાદ, સભા આદિનાં માપ કરતાં અર્ધ છે. જેમ કે સૌધર્મ દેવલોકમાં રહેતા દેવનાં વિમાનના કેટની ઉંચાઈ રૂ૦૯ જનની છે, ત્યારે અમરેન્દ્રની નગરીના કેટની ઉંચાઈ ૧૫૦ જનની છે. આ રીતે સૌધર્મ દેવલોકના વિમાનના પ્રાકાર “કેટ” કરતાં ચમરેન્દ્રની નગરીના પ્રાકાર-કેટ નું માપ અધું છે, સૌધર્મ દેવકને મુખ્ય મહેલ ૫૦૦ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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