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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१३०५ सू०२ (२४)दण्डकेषु स्थितिस्थाननिरूपणम् ७६३ क्रोधे बहुवचनेन मानमायालोभेषु चैकवचनेन एकः १, इत्थमेव लोभे बहुवचनेन द्वितीयः२, एवमेतावेव एकवचनान्तमायया जातो, एवं बहुवचनान्तमाययाऽन्यौ द्वौ४, एवमेते चत्वार एकवचनान्तमानेन जाताः। एवमेव बहुवचनान्तमानेन चत्वार इति संकलनयाऽष्टौभङ्गा भवन्ति । तथाहि-क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्तश्च मायोपयुक्तश्च लोभोपयुक्तश्च१, क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्तश्च मायोपयुक्तश्च लोभोपयुक्ताश्च २, क्रोधोपयुक्ताच, मानोपयुक्तच, मायोपयुक्ताश्च लोभोपयुक्त चेति तृतीयः ३ । क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्तश्च मायोपयुक्ताश्च लोभोपयुक्ताश्चेति चतुर्थः४ । क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्ताश्च मायोपयुक्तश्च लोभोपयुक्तश्चेति पंचमः५ । क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्ताश्च मायोपयुक्तश्च लोभोपयुक्ता चारके संयोगमें आठ भंग इस प्रकारसे होते हैं-यहां पर भी क्रोध को बहुवचनान्त ही रखना चाहिये-इस तरह क्रोध को बहुवचनान्त रखने पर और मान, माया एवं लोभ में एक वचन रहने पर प्रथम भंग बनता है, इसी तरह लोभमें बहुवचन करनेपर द्वितीय भंग बन जाता है इस तरह माया को एक वचन रखनेसे ये दो भंग बनते हैं। और माया को बहुवचनान्त रखने से तीसरा तथा माया और लोभ का बहुचनान्त करने से चौथा भंग बन जाता है । इस तरह ये चार भंग मान को एकवचन में रखने पर बनते हैं। और जब मान को बहुवचन में रखा जाता है तो इसी तरहके चार भंग और बन जाते हैं। इस प्रकार चतुष्कसंयोगमें आठ भंग हो जाते हैं। उनका नामनिर्देष इस प्रकारसे है___ (१) बहुतसे क्रोधोपयुक्त और कोईएक मानोपयुक्त, मायोपयुक्त लोभोपयुक्त (२) बहुतसे क्रोधोपयुक्त और कोईएक मानोपयुक्त मायोपयुक्त और बहुतसे लोभोपयुक्त (३) बहुतसे क्रोधोपयुक्त कोइएक मानो. पयुक्त बहुतसे मायोपयुक्त और कोईएक लोभोपयुक्त (४) बहुतसे क्रोधोपयुक्त मानोपयुक्त और मायोपयुक्त लोभोपयुक्त (५) बहुतसे क्रोधोपयुक्त मानोपयुक्त और कोइएक मायोपयुक्त लोभोपयुक्त (६) बहुतसे ચારના સંયોગથી આઠ ભાંગા નીચે મુજબ થાય છે-(૧) ક્રોધી ઘણું માની માયાવી તથા લેભી કઈક જ. (૨) કોધી ઘણ, માની, માયાવી કેઈક જ અને લેભી ઘણું, (૩) ક્રોધી ઘણું, માયાવી ઘણું અને માની તથા લેભી કેઈક જ. (૪) ક્રોધી ઘણા, માની કોઈક જ માયાવી તથા લેભી ઘણા આ રીતે માનીને એકવચનમાં રાખીને ચાર ભાંગા બન્યા, હવે માનને બહુવચનમાં રાખીને નીચે મુજબ ચાર ભાગ બને છે. (૫) ફોધી ઘણા માની ઘણું માયાવી તથા લોભી કેઈક જ. (૬) ક્રોધી ઘણું માની ઘણા અને લેભી પણ ઘણા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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