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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ ० १ सू० १ उपाध्यायनमस्कारः ५५ निष्पन्नत्वे उपाध्याय-शब्दस्य आधिक्येन प्रबचनस्य स्मरणप्रदातार इत्यर्थः, तदुक्तम् "बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहे। तं उवदिसंति जम्हा, उवज्झाया तेण बुच्चंति ॥ १॥" छाया-" द्वादशाङ्गो जिनाख्यातः, स्वाध्यायः कथितो बुधैः। तमुपदिशन्ति यस्मा-दुपाध्यायास्तेनोच्यन्ते ॥ १॥ इति, अथवा-उप-समीपे आ-समन्तादू ध्यायो-ध्यानम् "ध्यै चिन्तायाम् " इति ध्यैधातोः प्रयोगात्, तथा च-येषां समीपे जीवादिपदार्थविषयकं ध्यानं सर्वभावेन संजायते ते उपाध्यायाः। अथवा- उप-समीपे अधि=आधिक्येन आयः इष्टफलस्य शब्दकी सिद्धि करते हैं तब उसका अर्थ होता है-जिनसे विशेष रूपसे शास्त्रका ज्ञान शिष्यजनोंको होता है, वे उपाध्याय हैं, और जब “ इकूस्मरणे” इस स्मरणार्थक "इकू” धातुसे उपाध्याय शब्द बनाया जाता है तब इसका अर्थ होता है कि जो शिष्यजनोंके लिये अधिक रूपसे प्रवचनका स्मरण कराते हैं वे उपाध्याय हैं । कहा भी है " बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहे। तं उवदिसंति जम्हा उवज्झाया तेण वुच्चंति ॥ १॥" जिनेन्द्र देवके द्वारा कथित द्वादशांगरूप स्वाध्याय (सूत्र) गणधरादि देवोंने कहा है, उपाध्याय इन सूत्रोंका उपदेश करते हैं। इस कारण वे उपाध्याय कहलाते हैं । अथवा-"ध्यै चिन्तायाम्" इस धातुसे "उप” और "आङ्” उपसर्ग लगाकर उपाध्याय शब्द निष्पन्न होता है। "उप" शब्द का अर्थ समीप और "आ"शब्दका अर्थ “समन्तात्-(सम्पूर्ण)" है। इससे જેમના દ્વારા શિષ્યોને વધારે પ્રમાણમાં શાસ્ત્રોનું જ્ઞાન થાય છે તેમને ઉપાધ્યાય ४ छ. मने “ इक् स्मरणे" मा भ२।। 'इक्' धातु 43 न्यारे उपाध्याय શબ્દ બનાવવામાં આવે ત્યારે તેને અર્થ આ પ્રમાણે થાય છે–જેઓ શિષ્યોને અધિક પ્રમાણમાં પ્રવચનનું સ્મરણ કરાવે છે તેમને ઉપાધ્યાય કહે છે. કહ્યું પણ છે " बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहे। तं उवदिसंति जम्हा, उवज्झाया तेण वुच्चंति ॥१॥" જિનેન્દ્રદેવ દ્વારા કથિત બાર અંગ (દ્વાદશાંગ) રૂપ સ્વાધ્યાય (સૂત્ર) ગણધર આદિદેવાએ કહેલ છે, તે સ્વાધ્યાય (સૂત્ર)ને ઉપદેશ આપનાર ઉપાધ્યાય છે. તેથી तेभने उपाध्याय ४ छे. (१) मथवा - " ध्यै चिन्तायाम् ॥ २॥ यातुने 'उप' मने 'आङ्' उपसा सायी उपाध्याय २४ मने छ. ७५= पासे, ' आङ् ' = सशु, तेथी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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