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भगवतीसूत्रे युक्ताश्च मानोपयुक्तश्च मायोपयुक्ताश्चर, क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्ताश्च मायोपयुक्तश्च३, क्रोधोपयुक्ताश्व मानोपयुक्ताश्च मायोपयुक्ताश्च४, एवं क्रोधमानलोभेनापि चत्वारः४, एवं क्रोधमायालोभेनापि चत्वारः४ एवं द्वादश१२। पश्चात् मानेन मायया लोभेन च क्रोधो भक्तव्यः। ते क्रोधममुश्चत : अष्ट८ । एवं सप्तविंशतिभङ्गा ज्ञातव्याः २७ । एतस्या भदन्त ! रत्नप्रभायाः पृथिव्याः त्रिंशतिनिरयावासशतसहउत्ते य ) बहुतसे क्रोधोपयुक्त बहुतसे मानोपयुक्त और कोइ एक मायोपयुक्त ३ (कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोपउत्ता य) बहुत से क्रोधोपयुक्त बहुत से मानोपयुक्त और बहुत से मायोपयुक्त ४ (एवं कोहमाणलोभेणवि चउ) इसी प्रकार क्रोध मान लोभके साथ भी चार भङ्ग होते हैं ( एवं कोहमायालोहेण वि चउ) इसी प्रकार क्रोध, माया
और लोभ के साथ भी चार भङ्ग होते हैं । __(एवं बारस) इस प्रकार सब मिलाकर तीन संयोगी बारह भङ्ग होते है। अब चार संयोगी आठ भङ्ग कहते हैं (पच्छा माणेण मायाए लोभेण य कोहो भइयव्यो ते कोहं अमुंचता अट्ट) अब क्रोधको रखते हुए मान, माया और लोभ के साथ आठ भंग समझ लेना चाहिये ( एवं सत्तावीसं भंगा णेयव्वा) इस प्रकार असंयोगी एक, दोसंयोगी छ, तीन संयोगी घारह और चार संयोगी आठ मिलकर सत्ताईस भंग होते हैं।
(इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढ वोए तीसाए निरयावाससयसहभायोपयु४१२ कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोव उत्ते य मथ! ! डोषयुत અને મને પયુકત પણ ઘણા હોય છે અને કોઈ એક માપયુકત હોય છે. ૩ कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोवउत्ता य अथवा घोध, मान भने भायाथी से शथी युद्धत डोय छे. ४ एवं कोहमाणलोभेणवि चउ से प्रमाणे समान भने बामनी साथे पण या२ मांग थाय छे. ५ एवं कोहमाया लोहेणवि चउ मेरी प्रमाणे आध माया भने सामनी साथे ५५ यार मां थाय छ. है एवं बोरस मावी रीते या भणीने त्रिसयाजी ॥२ माथाय छे.
वे या२ सयोगी 203 लin 3 छ.-पच्छा माणेण मायाए लोभेण य कोहो भइयव्यो ते कोह अमुंचता अट्ठ) त्या२ ५छी अपने भान (अपनी साथे) भान, भाय। मने सामनी साथे २मा मांगा थाय छे, (एवं सत्तावीसं भंगा यव्वा) मा रीते मस योगी १ दिसयाका ६७ सयोगी १२ भने ચાર સંયેગી ૮ આઠ મેળવતાં ૨૭ સત્યાવીસ ભાંગા થાય છે.
(इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एग
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧